लिवर कैंसर की शुरुआती पहचान से बढ़ जाती है जीवन की उम्मीद,
जानें कौन से टेस्ट बताते हैं खतरा
2 months ago Written By: Aniket Prajapati
लिवर कैंसर एक गंभीर बीमारी है, लेकिन अगर इसका पता समय रहते चल जाए तो इलाज संभव है। पीएसआरआई अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार और कैंसर विशेषज्ञ डॉ. अमित उपाध्याय बताते हैं कि शुरुआती अवस्था में इसके लक्षण बहुत हल्के होते हैं,जैसे थकान महसूस होना, भूख कम लगना या पेट में भारीपन रहना। ये लक्षण सामान्य लगते हैं, इसलिए अधिकतर लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। डॉक्टर का कहना है कि नियमित जांच कराना बेहद जरूरी है, ताकि बीमारी को शुरुआती चरण में ही पकड़ा जा सके।
लिवर कैंसर की पहचान के लिए होते हैं तीन मुख्य टेस्ट
1. ब्लड टेस्ट से शुरू होती है जांच डॉ. उपाध्याय के अनुसार, सबसे पहले ब्लड टेस्ट किए जाते हैं। इनमें लिवर फंक्शन टेस्ट (LFT), हेपेटाइटिस बी और सी की जांच, और अल्फा-फीटोप्रोटीन (AFP) टेस्ट शामिल होते हैं। AFP टेस्ट में खून में एक खास प्रोटीन के स्तर को मापा जाता है। अगर यह स्तर सामान्य से ज्यादा हो, तो यह लिवर कैंसर या किसी अन्य लिवर समस्या का संकेत हो सकता है। हालांकि, शुरुआती स्टेज में AFP का स्तर सामान्य भी रह सकता है, इसलिए सिर्फ इसी टेस्ट के आधार पर कैंसर की पुष्टि नहीं की जाती।
2. इमेजिंग टेस्ट से मिलती है साफ तस्वीर दूसरे चरण में अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन और एमआरआई जैसे इमेजिंग टेस्ट किए जाते हैं। ये जांचें लिवर की संरचना और उसमें किसी गांठ या असामान्यता को स्पष्ट रूप से दिखाती हैं। डॉक्टरों के मुताबिक, ट्रिपल फेज सीटी स्कैन लिवर कैंसर की पहचान के लिए सबसे सटीक जांच मानी जाती है। इससे यह पता चलता है कि लिवर में कैंसर है या नहीं, और अगर है तो वह कितना फैल चुका है।
3. बायोप्सी से होती है पक्की पुष्टि जब सीटी स्कैन या एमआरआई से स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती, तब बायोप्सी की जाती है। इसमें लिवर से ऊतक का छोटा सा नमूना लेकर माइक्रोस्कोप के नीचे जांच की जाती है। इससे यह साफ हो जाता है कि कोशिकाएं कैंसरग्रस्त हैं या नहीं।
इन लोगों को करवानी चाहिए नियमित जांच जिन लोगों को हेपेटाइटिस बी या सी, फैटी लिवर, या अत्यधिक शराब सेवन की समस्या है, उन्हें नियमित रूप से लिवर की जांच करानी चाहिए। डॉ. उपाध्याय कहते हैं कि अगर कैंसर का पता शुरुआती स्तर पर चल जाए, तो इलाज की सफलता की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। इससे मरीज लंबे समय तक बेहतर जीवन गुणवत्ता के साथ जी सकता है।