पैंक्रियाटिक कैंसर: समय पर पहचान और सही इलाज से बचाव संभव,
डॉक्टर कहते हैं साइलेंट डिजीज
1 months ago
Written By: अनिकेत प्रजापति
पैंक्रियाटिक कैंसर दुनिया के सबसे खतरनाक कैंसरों में शामिल है और भारत में इसके मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। शुरुआती लक्षण अक्सर हल्के होते हैं और लोग उन्हें सामान्य समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। खट्टी डकार, पेट में हल्की जलन, कमर दर्द, थकान या अचानक वजन कम होना जैसी समस्याओं को लोग आम समझ लेते हैं। डॉक्टर रमन नारंग (कंसल्टेंट मेडिकल एवं हेमेटोलॉजी ऑन्कोलॉजी, MOC कैंसर केयर एंड रिसर्च सेंटर, नई दिल्ली) के अनुसार, अब आधुनिक इलाज में जेनेटिक टेस्टिंग और प्रिसिजन ऑन्कोलॉजी मदद कर रहे हैं ताकि मरीज और परिवार समय रहते सुरक्षित रह सकें।
पैंक्रियाटिक कैंसर के शुरुआती लक्षण
डॉक्टर नारंग ने बताया कि मरीज अक्सर बताते हैं कि “लगता बस उम्र का असर या गैस की प्रॉब्लम है।” हालांकि ध्यान देने योग्य लक्षण हैं:
बिना वजह वजन कम होना
- अचानक शुगर लेवल बढ़ जाना (50 वर्ष के बाद नई डायबिटीज़ खास संकेत है)
- भूख कम लगना
- हल्के रंग के मल
- पीलिया
- अगर ये लक्षण एक साथ नजर आएं तो तुरंत जांच कराना जरूरी है।
प्रिसिजन ऑन्कोलॉजी और जेनेटिक टेस्टिंग का महत्व
पैंक्रियाटिक कैंसर कई बार जेनेटिक बदलावों से प्रभावित होता है। मॉडर्न कैंसर केयर अब केवल कीमोथेरेपी नहीं, बल्कि मॉलिक्यूलर टेस्टिंग से शुरू होती है। इससे पता चलता है कि कौन-सा मरीज टार्गेटेड थेरेपी या इम्यूनोथेरेपी से लाभ ले सकता है और परिवार में यह पैटर्न कैसे चलता है। बुजुर्ग मरीजों में भी उम्र के लक्षणों को सामान्य न मानना चाहिए। जेरियाट्रिक ऑन्कोलॉजी में सुरक्षित और व्यक्तिगत इलाज संभव है।
युवा में पैंक्रियाटिक कैंसर
- युवाओं में यह कैंसर कम होता है लेकिन बढ़ता जा रहा है। इसके कारण हैं:
- आनुवंशिक सिंड्रोम
- धूम्रपान और शराब का अधिक सेवन
- मोटापा और हाई-फैट डाइट
- क्रॉनिक पैंक्रियाटाइटिस
- युवा मरीजों में इलाज से पहले फर्टिलिटी प्रिज़र्वेशन और जेनेटिक काउंसलिंग जरूरी है।
बचाव और सावधानियां
- स्वस्थ वजन बनाए रखें
- धूम्रपान और शराब से बचें
- डायबिटीज़ नियंत्रित रखें
- फाइबर और प्लांट-बेस्ड फूड बढ़ाएं
- परिवार का मेडिकल इतिहास डॉक्टर को दें
- नए या लगातार लक्षणों को नज़रअंदाज न करें