वाराणसी की दिव्य कथा:
कैसे शिव ने बसाया यह प्राचीन शहर और क्यों रखा इसे त्रिशूल पर
1 months ago Written By: Aniket Prajapati
वाराणसी, जिसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है, केवल एक साधारण शहर नहीं बल्कि हिंदुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पवित्र नगरी की स्थापना स्वयं भगवान शिव ने की थी। यही कारण है कि काशी का उल्लेख वेदों, पुराणों और उपनिषदों में कई बार मिलता है। कहा जाता है कि यह पूरी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है और प्रलय होने पर भी इसका अस्तित्व नष्ट नहीं होता। पौराणिक मान्यता है कि काशी में मृत्यु को प्राप्त करने वाला व्यक्ति मोक्ष पाता है। आइए जानते हैं वाराणसी की पौराणिक कथा और इससे जुड़े विश्वासों के बारे में।
कैसे पड़ा वाराणसी का नाम
वाराणसी नाम दो पवित्र नदियों—वरुणा और असि—से मिलकर बना है। इन दोनों नदियों के बीच बसे इस क्षेत्र को ही वाराणसी कहा गया। इसके अलावा यह स्थान काशी और बनारस के नाम से भी प्रसिद्ध है। काशी का अर्थ है – ‘प्रकाश का नगर’, और इसे भगवान शिव की प्रिय नगरी माना जाता है।
वाराणसी की पौराणिक कथा
पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथाओं के अनुसार वाराणसी की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं। स्कंद पुराण और काशी खंड में बताया गया है कि शिव को यह नगरी इतनी प्रिय है कि उन्होंने इसे अपना स्थायी निवास बना लिया। मान्यता है कि जब प्रलय आता है, तब भी काशी नष्ट नहीं होती और अपनी जगह पर बनी रहती है। यही कारण है कि इसे दुनिया की सबसे प्राचीन और दिव्य नगरी कहा जाता है। यहां भगवान शिव विश्वनाथ के रूप में विराजमान हैं और करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र हैं।
क्यों रखा शिव ने काशी को अपने त्रिशूल पर
कथाओं के अनुसार एक समय असुरों और देवताओं के बीच भीषण युद्ध छिड़ गया था। असुरों ने काशी में अत्याचार फैलाना शुरू कर दिया। तब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उनकी शक्ति को रोका और काशी की रक्षा की। माना जाता है कि इस नगरी को त्रिशूल पर धारण करने का उद्देश्य इसे विनाश से बचाना और इसे कालचक्र से परे रखना था। इसी कारण काशी को अमर नगरी कहा जाता है।