धार्मिक दृष्टि से अगरबत्ती जलाना: शास्त्र क्या कहते हैं,
और सही नियम क्या हैं
1 months ago Written By: ANIKET PRAJAPATI
घर में रोजाना पूजा-पाठ, भगवान की आराधना या मंदिर में जाने पर अगरबत्ती जलाना आम दृश्य है। लोग इसे शुभ मानते हैं और महंगी सुगंधित अगरबत्तियों से वातावरण को सुगंधित बनाते हैं। लेकिन धार्मिक जानकारों के अनुसार, प्राचीन शास्त्रों में अगरबत्ती के इस्तेमाल का कोई उल्लेख नहीं है। सिर्फ धूपबत्ती और कपूर का जिक्र मिलता है। इसका मतलब है कि धार्मिक दृष्टि से हर अगरबत्ती को पूजा में जलाना हमेशा शुभ नहीं माना गया है।
शास्त्रों में अगरबत्ती का उल्लेख नहीं हिंदू धर्म के विद्वानों का कहना है कि पूजा-पाठ में धूपबत्ती और कपूर का प्रयोग निश्चित रूप से किया जाता था, लेकिन बांस से बनी अगरबत्तियों का उल्लेख नहीं है। शास्त्रों के अनुसार, बांस का संबंध अंतिम संस्कार की सामग्री से जोड़ा गया है। इसलिए पूजा, अनुष्ठान और शुभ कार्यों में बांस की अगरबत्ती का इस्तेमाल वर्जित माना गया है। इसकी जगह हमेशा धूपबत्ती का उपयोग करना चाहिए।
बांस की अगरबत्ती क्यों मानी जाती है अशुभ हालांकि बांस का उपयोग शादी, जनेऊ और मंडप बनाने में किया जाता है, लेकिन बांस से बनी अगरबत्ती का उपयोग पूजा में निषिद्ध माना गया है। शास्त्रों में बांस को जलाना निषेध है और इसे दाह संस्कार में भी नहीं जलाया जाता। क्योंकि अगरबत्ती जलाकर ही प्रयोग में आती है, बांस की अगरबत्ती को धार्मिक दृष्टि से अनुचित माना गया है।
अगरबत्ती जलाने के नियम ज्योतिषियों के अनुसार, पूजा के समय हमेशा दो अगरबत्तियां जलानी चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। वहीं, चार अगरबत्तियां जलाना शक्ति का प्रतीक माना जाता है और विशेष धार्मिक अनुष्ठानों में इसका प्रयोग किया जाता है।