जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने बताया LOVE का असली अर्थ कहा- ये सिर्फ प्रेम नहीं,
बल्कि ईश्वर से जुड़ाव और सेवा का प्रतीक है
2 months ago Written By: Aniket Prajapati
पद्मविभूषण पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनका नाम देशभर में आदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है। महज दो महीने की उम्र में दृष्टिहीन हो जाने के बावजूद उन्होंने अपनी अद्भुत विद्वत्ता, असाधारण स्मरण शक्ति और 22 भाषाओं के ज्ञान से दुनिया को चौंकाया है। वे अपने प्रवचनों और रामकथाओं के माध्यम से लोगों को भक्ति और सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। हाल ही में एक प्रवचन के दौरान उन्होंने “लव (LOVE)” शब्द का असली अर्थ समझाते हुए बताया कि यह सिर्फ प्रेम नहीं, बल्कि ईश्वर से जुड़ाव और आत्मिक सेवा का प्रतीक है।
ईश्वर से जुड़ाव ही सच्चा प्रेम जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी के अनुसार, “लव” का अर्थ केवल प्रेम तक सीमित नहीं है। यह परम प्रेम, निस्वार्थ भक्ति और ईश्वर से जुड़ाव का भाव है। उन्होंने कहा कि सच्चा प्रेम वही है जो सेवा, करुणा और दया से उत्पन्न होता है। ऐसा प्रेम आत्मा को शुद्ध करता है और व्यक्ति को ईश्वर के निकट ले जाता है। उन्होंने कहा कि आज के समय में प्रेम का अर्थ सिर्फ भावनात्मक जुड़ाव तक सीमित कर दिया गया है, जबकि इसका मूल उद्देश्य “परमात्मा से एकत्व” है।
अंग्रेजी के LOVE का अर्थ समझाया अपने प्रवचन में जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी ने अंग्रेजी के शब्द “LOVE” को अलग दृष्टिकोण से समझाया। उन्होंने बताया कि इस शब्द के हर अक्षर का एक गहरा अर्थ है, जो जीवन के सत्य से जुड़ा हुआ है।
L: पहला अक्षर ‘L’ का मतलब है Lake of Tears यानी “आंसुओं की झील”। उन्होंने कहा कि प्रेम में जब आसक्ति बढ़ जाती है तो व्यक्ति दुख और आंसुओं में डूब जाता है।
O: दूसरा अक्षर ‘O’ का अर्थ है Ocean of Sorrows यानी “दुखों का सागर”। उन्होंने बताया कि जब प्रेम में मोह और अपेक्षाएं जुड़ जाती हैं, तो यह आनंद नहीं बल्कि पीड़ा का कारण बन जाता है।
V: तीसरा अक्षर ‘V’ का मतलब है Valley of Death यानी “मृत्यु की घाटी”। उन्होंने कहा कि झूठे प्रेम में व्यक्ति मानसिक और आत्मिक रूप से मर जाता है।
E: चौथा अक्षर ‘E’ का अर्थ है End of Life यानी “जीवन का अंत”। जगद्गुरु के अनुसार, जब प्रेम स्वार्थ से भरा होता है, तो वह जीवन की शांति और आनंद दोनों को समाप्त कर देता है।
भक्ति ही है सच्चे प्रेम का मार्ग जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी ने कहा कि सच्चा “लव” वही है जो हमें ईश्वर के प्रति समर्पण की ओर ले जाए। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे प्रेम को केवल सांसारिक आकर्षण न समझें, बल्कि उसे सेवा, करुणा और आत्मसमर्पण के रूप में अपनाएं। यही “लव” हमें परमात्मा से जोड़ता है और जीवन को सार्थक बनाता है।