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काशी के कोतवाल कालभैरव: शिव के रौद्र रूप की कथा और कालभैरव जयंती का महत्व

1 months ago
Written By: अनिकेत प्रजापति

हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान कालभैरव की जयंती बड़े श्रद्धा भाव से मनाई जाती है। इस वर्ष कालभैरव अष्टमी 12 नवंबर को मनाई जा रही है। इस दिन भक्त उपवास रखकर भगवान भैरव की पूजा करते हैं और उनसे भय, पाप और संकट से मुक्ति की कामना करते हैं। कालभैरव जयंती केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह भगवान शिव के न्यायप्रिय और रौद्र स्वरूप की याद भी दिलाती है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के अहंकार को नष्ट करने के लिए ही कालभैरव का रूप धारण किया था।

अहंकार के नाश के लिए हुआ कालभैरव का जन्म
स्कंद पुराण में भगवान शिव के रौद्र स्वरूप कालभैरव का वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच यह विवाद हो गया कि सबसे श्रेष्ठ कौन है। ऋषि-मुनियों ने विचार कर भगवान शिव को सर्वश्रेष्ठ बताया। इस निर्णय से ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए और अहंकार में आकर भगवान शिव का अपमान कर दिया। इससे भगवान शंकर अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने रौद्र रूप से कालभैरव को प्रकट किया। जैसे ही कालभैरव प्रकट हुए, उन्होंने ब्रह्मा जी के पांचवें सिर का नाश कर दिया। इस घटना के कारण उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष लगा, जिस मुक्ति पाने के लिए वे तीर्थों की यात्रा पर निकल पड़े।

काशी में मिली भैसेरव को मुक्ति
कथाओं के अनुसार, जब कालभैरव तीर्थयात्रा के दौरान भगवान विष्णु के पास पहुंचे, तो उन्होंने काशी जाने का सुझाव दिया। गंगा और मत्स्योदरी के संगम में स्नान करते समय उनके हाथ से ब्रह्मा का कपाल गिर गया, जिससे वे ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हो गए। इसी स्थान को आज कपालमोचन तीर्थ कहा जाता है। यहीं कालभैरव ने अपना स्थायी निवास बनाया और भगवान विश्वनाथ ने उन्हें काशी की रक्षा का दायित्व सौंपा।

क्यों कहलाते हैं ‘काशी के कोतवाल’
शिव पुराण के काशी खंड में वर्णन है कि भगवान शिव ने काशी की सुरक्षा की जिम्मेदारी कालभैरव को दी थी। तभी से उन्हें ‘काशी का कोतवाल’ कहा जाने लगा। मान्यता है कि बिना कालभैरव की अनुमति के कोई भी व्यक्ति काशी में प्रवेश नहीं कर सकता। भक्तों की यात्रा भी उनके दर्शन से ही आरंभ होती है। यह परंपरा सिखाती है कि मोक्ष की नगरी काशी में प्रवेश से पहले व्यक्ति को अपने अहंकार और पापों का त्याग करना चाहिए।

काल से भी परे हैं कालभैरव
भगवान शिव के वरदान से काशी में यमराज का अधिकार नहीं है। यहां न्याय देने और पापों का दंड तय करने का कार्य स्वयं कालभैरव देव करते हैं। कहा जाता है कि कालभैरव समय और मृत्यु पर भी नियंत्रण रखते हैं। वे आज भी काशी की परिक्रमा करते हैं और धर्म की रक्षा करते हैं। इसलिए उन्हें ‘काल से परे देवता’ माना गया है।

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