12 नवंबर को मनाई जाएगी काल भैरव जयंती, जानिए शुभ योग,
पूजा का मुहूर्त और कथा
1 months ago Written By: ANIKET PRAJAPATI
भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की जयंती इस वर्ष 12 नवंबर, बुधवार को मनाई जाएगी। माना जाता है कि मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान काल भैरव का प्रकट दिवस है। इस दिन श्रद्धालु उपवास रखकर और पूजा अर्चना करके भगवान भैरव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है, ग्रह दोष दूर होते हैं और अकाल मृत्यु का भय मिट जाता है। तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए भी यह दिन अत्यंत शुभ माना गया है।
कब है काल भैरव जयंती? जानिए तिथि और समय
दृक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष काल भैरव जयंती के लिए मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी तिथि का प्रारंभ 11 नवंबर की रात 11 बजकर 8 मिनट पर होगा और यह 12 नवंबर की रात 10 बजकर 58 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के आधार पर काल भैरव जयंती 12 नवंबर, बुधवार को मनाई जाएगी। इस दिन भक्त उपवास रखकर काल भैरव की पूजा करते हैं और रात्रि में विशेष आरती की जाती है।
दो शुभ योग में मनाई जाएगी जयंती
इस बार काल भैरव जयंती पर दो शुभ योग बन रहे हैं — शुक्ल योग और ब्रह्म योग। शुक्ल योग प्रातः से शुरू होकर सुबह 8 बजकर 2 मिनट तक रहेगा, जिसके बाद ब्रह्म योग आरंभ होगा जो पूरी रात तक बना रहेगा। इस दिन अश्लेषा नक्षत्र सुबह से लेकर शाम 6 बजकर 35 मिनट तक रहेगा, इसके बाद मघा नक्षत्र प्रारंभ होगा। ये सभी योग पूजा-पाठ के लिए अत्यंत शुभ माने गए हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त और राहुकाल
काल भैरव जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 4:56 बजे से 5:49 बजे तक रहेगा। इसी समय में पूजा और ध्यान करने का सबसे उत्तम समय है। उस दिन कोई अभिजीत मुहूर्त नहीं रहेगा। राहुकाल दोपहर 12 बजकर 5 मिनट से 1 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता।
क्यों हुई काल भैरव की उत्पत्ति?
स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी को अहंकार हो गया और उन्होंने भगवान शिव का अपमान किया। इससे शिव क्रोधित हो गए और उनके रौद्र रूप से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव के आदेश पर काल भैरव ने ब्रह्मा जी का चौथा सिर काट दिया। इसके बाद उन पर ब्रह्महत्या का दोष लगा, जिससे मुक्ति पाने के लिए वे काशी पहुंचे। वहां उन्हें पाप से मुक्ति मिली और वे काशी के कोतवाल के रूप में स्थापित हुए। आज भी काशी की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है, जब तक भक्त काल भैरव के दर्शन न करें।