कौन है कीर्तिमुख जो शिव के आदेश पर खुद को ही निकल गया था,
बुरी नजर से बचाता है इसका चेहरा
1 months ago Written By: ANIKET PRAJAPATI
अक्सर आपने देखा होगा कि कई लोग अपने घर या दुकान के बाहर एक डरावना सा चेहरा लगाते हैं। इसे देखकर लोगों को बुरी नजर से सुरक्षा मिलती है। यह चेहरा किसी आम चित्र का नहीं बल्कि पौराणिक राक्षस कीर्तिमुख का है। कहा जाता है कि इस राक्षस को भगवान शिव ने विशेष वरदान दिया था कि जहाँ भी उसका चेहरा रहेगा, वहाँ कोई नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर सकेगी। यही वजह है कि कीर्तिमुख का मुख घरों और दुकानों के प्रवेश द्वार पर सजाया जाता है।
कीर्तिमुख की पौराणिक कथा: कैसे बना यह राक्षस कीर्तिमुख की कहानी काफी रोचक और अद्भुत है। कहते हैं कि एक बार भगवान शिव ध्यान में लीन थे। तभी राहु ने अपनी घमंड में चंद्रमा पर ग्रहण लगा दिया। यह देखकर शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। उसी गुस्से के प्रभाव से कीर्तिमुख का जन्म हुआ। उसका मुख सिंह की तरह भयंकर था और आंखों से आग निकल रही थी। भगवान शिव ने उसे राहु को खाने का आदेश दिया, ताकि वह अपनी शक्ति सिद्ध कर सके।
खुद को निगलकर दिखाया शिव के प्रति भक्ति राहु से शिव की नाराजगी शांत हो गई और उन्होंने राहु को माफ कर दिया। अब कीर्तिमुख भूखा था और उसने भगवान से पूछा कि अब मैं क्या करूँ। शिव ने उसे अपने ही शरीर को खाने का आदेश दिया। आश्चर्य की बात यह है कि कीर्तिमुख ने शिव के आदेश का पालन किया और खुद को निगल लिया। अंततः भगवान शिव ने उसे रोका और कहा, “तुम्हारा मुख यशस्वी है, इसे मत खाओ।” इस घटना के बाद कीर्तिमुख शिव के प्रिय गणों में शामिल हो गया।
वरदान और बुरी नजर से सुरक्षा भगवान शिव ने कीर्तिमुख को वरदान दिया कि उसका मुख जहाँ भी रहेगा, वहाँ किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का वास नहीं होगा। यही वजह है कि आज भी कीर्तिमुख का चेहरा घर, मंदिर और दुकानों के बाहर लगाया जाता है। यह न केवल बुरी नजर से सुरक्षा देता है बल्कि सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक भी माना जाता है। कहते हैं कि यह राक्षस हर प्रकार की नेगेटिव एनर्जी को निगल लेता है और घर या व्यवसाय को सुरक्षित रखता है।
घर में या दुकान पर लगाने का महत्व कीर्तिमुख का चेहरा सजाना केवल पौराणिक परंपरा नहीं बल्कि सुरक्षा का प्रतीक भी है। लोग इसे प्रवेश द्वार पर लगाकर घर में सुख-शांति और समृद्धि बनाए रखने का प्रयास करते हैं। यही कारण है कि आज भी भारत और कुछ एशियाई देशों में कीर्तिमुख का चित्र या मूर्ति बड़े श्रद्धा भाव से लगाई जाती है।