प्रेमानंद जी महाराज के अनमोल विचार,
नाम जप और प्रभु चिंतन से ही मिलती है सच्ची शांति
1 months ago Written By: Aniket Prajapati
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जो पूरी तरह संतुष्ट हो। हर कोई खुद को दूसरों से बेहतर साबित करने की होड़ में लगा है। लेकिन इस प्रतिस्पर्धा में मन हमेशा विचलित और अस्थिर रहता है। जब तक मनुष्य को एक इच्छा पूरी नहीं होती, तब तक दूसरी चाह उसे चैन से बैठने नहीं देती। ऐसे में प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि “नाम जप और भगवान का चिंतन ही जीवन में आनंद और संतोष का एकमात्र उपाय है।” उनके ये दिव्य विचार न सिर्फ आत्मिक शांति देते हैं, बल्कि जीवन को सही दिशा भी दिखाते हैं।
प्रेमानंद जी महाराज के अनमोल विचार महाराज जी के अनुसार, जीवन के हर कर्म में यदि हम ईश्वर का नाम लेते हैं, तो वही सबसे बड़ा भजन बन जाता है।
अध्यात्म मार्ग में आपका सच्चा साथी केवल आपके गुरुदेव हैं। गुरु ही वह प्रकाश हैं जो अंधकार से बाहर निकालते हैं और सच्चे मार्ग की ओर ले जाते हैं।
भगवान केवल अपनेपन से ही प्राप्त होते हैं। प्रेम और समर्पण से ही ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है, न कि दिखावे या आडंबर से।
चित्त में भय आना, पूर्व जन्म के पापों का फल है। भय तब ही आता है जब हमारे कर्मों में दोष होता है। अच्छे कर्म भय को मिटाते हैं।
अध्यात्म की ऊंचाई का आधार आपकी सहनशक्ति है। जो सहन करना जानता है, वही आत्मिक रूप से सबसे अधिक ऊंचाई पर पहुंचता है।
प्रभु के भरोसे से बढ़कर कोई साधना नहीं। जिसने स्वयं को प्रभु की इच्छा में छोड़ दिया, उसे किसी साधना की आवश्यकता नहीं।
चतुर भक्त भगवान को चाहता है, भगवान से कुछ नहीं। सच्चा भक्त भगवान से लाभ नहीं, बल्कि केवल भगवान को ही चाहता है।
सत्संग, अध्यात्म और भगवान के बिना कहीं भी चैन नहीं मिलेगा। जीवन में सच्ची शांति केवल ईश्वर के नाम और संग से मिलती है।
भगवान की माया से भी बढ़कर भगवान का नाम है। माया मोह में फंसने से बेहतर है कि हम नाम स्मरण में रम जाएं।
वही निश्चिंत रह सकता है जो भगवान में चित्त जोड़े हुए है। जो व्यक्ति प्रभु में मन लगाता है, उसे जीवन की कोई चिंता नहीं रहती।
पाप कर्म बढ़ जाने पर भगवान का चिंतन नहीं होता। मनुष्य के पाप उसके और ईश्वर के बीच दीवार बन जाते हैं।
यदि नाम, प्रतिष्ठा और पद की चाह है, तो हृदय अभी मलीन है। सच्ची भक्ति में किसी भी प्रकार की आकांक्षा नहीं होती।
मन की इच्छाओं पर शासन करना है तो नाम जप करना ही होगा। नाम जप से मन नियंत्रित होता है और इच्छाएं शांत होती हैं।
भजन कैसे और कितना चल रहा है, इसे गुप्त रखो। भक्ति का प्रदर्शन नहीं, अनुभव ही उसका वास्तविक रूप है।
दूसरे से अपनी तुलना करने पर अहंकार बना रहता है। जब तक हम दूसरों से अपनी तुलना करते रहेंगे, विनम्रता नहीं आएगी।
जीवन में लागू करें महाराज जी के ये विचार
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, जब मनुष्य नाम जप, भजन और सत्संग को जीवन का हिस्सा बना लेता है, तब उसके भीतर का अंधकार मिट जाता है। मन शांत होता है और जीवन में वास्तविक सुख, प्रेम और संतोष का उदय होता है।