प्रेमानंद महाराज ने भक्त से पूछा सवाल का दिया,
सादा और सीधे शब्दों में जवाब
1 months ago Written By: Aniket Prajapati
संत प्रेमानंद महाराज से हाल ही में एक भक्त की मुलाकात और सवाल ने चर्चा छेड़ दी है। भक्त ने पूछा कि क्या हमें वही काम करना चाहिए जो हमें पसंद है या जो हम अभी कर रहे हैं, उसे ही करते रहना चाहिए। इस पर प्रेमानंद महाराज ने साफ और सुलभ भाषा में दिशा दी: व्यक्तिगत मनमानी पर नहीं, बल्कि शास्त्र, सद्गुरु और संत वाणी के अनुसार चलना बेहतर होता है। महाराज ने बताया कि शास्त्र सम्मत आचरण से ही लौकिक और पारलौकिक दोनों तरह की उन्नति संभव है; वहीं मनमानी पथ पर चलने से व्यक्तियों को समाज और आत्मा—दोनों स्तर पर हानि उठानी पड़ती है।
शास्त्र और संतों की बात मानी जाए तो जीवन सुधरता है प्रेमानंद महाराज ने कहा कि यह फैसला मनमानी नहीं होना चाहिए कि “मैं क्या करूं और क्या न करूं।” हमारे कर्मों का मानदंड शास्त्र और सद्गुरु की आज्ञा होना चाहिए। यदि आचरण शास्त्र, संत वाणी और गुरु के अनुरूप होगा तो व्यक्ति लगातार बेहतर बनता जाएगा। बेहतर बनने का मतलब है काम, क्रोध, लोभ और मोह जैसे बंधनों से ऊपर उठना और नैतिक व आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ना।
मनमानी का परिणाम — लोक व परलोक में हानि महाराज ने चेताया कि मनमानी पर चलने से व्यक्ति का पतन निश्चित है। यदि किसी से पाप हो गया या आचरण गंदा रहा तो उसे इस लोक में अशांति, चिंता और भय का सामना करना पड़ता है। परलोक में भी ऐसे कर्मों का परिणाम बुरा होता है और नरक जैसी अवस्थाएँ संभव हैं। इसलिए मन के अनुसार चलकर असतिशय काम करना खतरनाक है।
शास्त्रों का पालन ही स्वार्थ और समाज दोनों के हित में उन्होंने यह भी कहा कि शास्त्र और संतों की आज्ञा पर चलने से न सिर्फ आत्मा का कल्याण होता है बल्कि समाज में भी शांति आती है। व्यक्ति की छोटी-छोटी गलतियों से बड़ी समस्याएँ जन्म ले लेती हैं; इसलिए शास्त्र सम्मत जीवन जीना ही सबसे हितकारक मार्ग है।