प्रेमानंद महाराज की अनसुनी कहानी: बचपन में घर छोड़कर साधु बनने का लिया फैसला,
पिता ने दिया ऐसा आशीर्वाद
1 months ago Written By: अनिकेत प्रजापति
भक्ति, समर्पण और त्याग—इन तीन शब्दों में प्रेमानंद महाराज का पूरा जीवन समाया है। कम उम्र में ही उन्होंने तय कर लिया था कि उनका जीवन सिर्फ भगवान की सेवा और भक्ति के लिए है। इस निर्णय को निभाने के लिए उन्होंने घर-परिवार, रिश्तों और आराम की जिंदगी तक का त्याग कर दिया। लेकिन जब पिता को उनके इस फैसले की जानकारी मिली, तब क्या हुआ? महाराज जी ने खुद इस अनुभव को सुनाते हुए बताया कि कैसे पिता की सीख और आशीर्वाद ने उनके पूरे जीवन की दिशा बदल दी। यह कहानी सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, बल्कि एक पिता और पुत्र के भावनात्मक संवाद की भी है।
घर छोड़कर साधु बनने का निर्णय
प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि जिस दिन वे भगवान की भक्ति के लिए घर से निकले, उसके तीन दिन बाद उनके पिता ने उन्हें ढूंढ लिया। जैसे ही उन्होंने पिता को आते देखा, वे आंखें बंद करके बैठ गए। पिता ने कहा—“उठ खड़ा हो।” दो बार आवाज देने पर भी महाराज जी नहीं उठे, लेकिन तीसरी बार उन्हें डर लगा कि अब डंडा पड़ेगा, इसलिए उठ गए। उन्होंने पिता से कहा कि उनकी जिंदगी अब भगवान को समर्पित है और वे न घर जाएंगे, न ही किसी की बात मानेंगे। यह सुनकर अचानक पिता के मन में गहरा परिवर्तन आया, जैसे उन पर भगवान की कृपा हो गई हो।
पिता का आशीर्वाद और महत्वपूर्ण सीख
पिता ने उनसे पूछा“घर नहीं जाओगे?” महाराज ने साफ कहा“नहीं।” “शादी नहीं करोगे?” इस पर भी जवाब था “नहीं।”इसके बाद पिता ने उन्हें सीने से लगाया और तीन बार “राम-राम-राम” कहा। फिर बोलते हुए आशीर्वाद दिया “जाओ, जिंदगी में तुम्हारा कोई बाल भी बांका नहीं कर पाएगा। अगर सच्चे मन से बाबा बने तो ऊसर जमीन पर भी बैठोगे तो फूल बरसेंगे। लेकिन एक बात हमेशा याद रखना… किसी की बहन-बेटी को गलत नजर से कभी मत देखना।” महाराज ने पिता से वचन दिया “आप यह बात जिंदगी में कभी नहीं सुनेंगे।” प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि पिता तो उस दिन चले गए, लेकिन उनका आशीर्वाद आज भी उनके साथ है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि माता-पिता का आशीर्वाद वास्तव में भगवान का आशीर्वाद होता है, जो जीवनभर रक्षा करता है।