देवउठनी एकादशी 2025: भगवान विष्णु के जागने से शुरू होंगे शुभ कार्य, जानिए व्रत,
पूजा और तुलसी विवाह का महत्व
2 months ago Written By: ANIKET PRAJAPATI
हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है। इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। हर साल यह व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और इसी के साथ शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। चार महीने तक चलने वाले चातुर्मास के बाद जब भगवान जागते हैं, तब से विवाह, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों की अनुमति मानी जाती है। धार्मिक दृष्टि से यह दिन अत्यंत पवित्र और फलदायी माना गया है।
तुलसी विवाह का महत्व
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का विशेष विधान है। इस दिन तुलसी माता का विवाह भगवान शालिग्राम (भगवान विष्णु का स्वरूप) से कराया जाता है। यह प्रतीकात्मक विवाह न केवल धार्मिक रूप से शुभ होता है, बल्कि इसे करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। कहा जाता है कि जिन लोगों की शादी में अड़चनें आ रही हों, उन्हें इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन अवश्य करना चाहिए। यह व्रत वैवाहिक जीवन में मधुरता और स्थिरता लाता है।
व्रत और पूजा का विधान
इस दिन व्रत रखने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है और पूरे दिन उपवास रखा जाता है। भगवान विष्णु की पूजा पीले फूल, तुलसी दल, पंचामृत, धूप-दीप और फल से की जाती है। भक्त विष्णु सहस्त्रनाम और गीता पाठ करते हैं। दिनभर भजन-कीर्तन करने से मन को शांति और घर में सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। माना जाता है कि इस व्रत से पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
दीपदान और सजावट का महत्व
देवउठनी एकादशी को घरों में दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है। विशेष रूप से तुलसी चौरे के पास दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है। लोग इस दिन रंगोली बनाते हैं और घर को दीपों से सजाते हैं। यही कारण है कि इसे देव दिवाली भी कहा जाता है, क्योंकि यह दिवाली के बाद का पहला बड़ा पर्व होता है।
दान-पुण्य और शुभ कार्यों की शुरुआत
इस दिन जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, कंबल और धन का दान करने से अत्यधिक पुण्य मिलता है। धार्मिक मान्यता है कि देवउठनी एकादशी पर किया गया दान कई गुना फल देता है और पितरों को शांति मिलती है। यही दिन शुभ कार्यों के आरंभ का भी प्रतीक है, क्योंकि चातुर्मास के दौरान विवाह और अन्य मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद ही ये कार्य दोबारा शुरू होते हैं।यह दिन केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि जीवन में नई शुरुआत, सकारात्मक सोच और समृद्धि का प्रतीक है। श्रद्धा और भक्ति से किया गया व्रत और पूजा निश्चित ही मनोवांछित फल प्रदान करती है।