शनि, मंगल और केतु से जुड़ी है रीढ़ की हड्डी की परेशानी,
जानें ज्योतिष और स्वास्थ्य दोनों दृष्टि से उपाय
1 months ago Written By: अनिकेत प्रजापति
रीढ़ की हड्डी को मानव शरीर का आधार स्तंभ कहा जाता है। यह न केवल हमारे शरीर को सहारा देती है, बल्कि पूरे शरीर में ऊर्जा प्रवाह और मानसिक संतुलन बनाए रखने में भी मदद करती है। ज्योतिष के अनुसार, ग्रहों की स्थिति का असर न सिर्फ हमारे स्वभाव पर, बल्कि हमारे शरीर के अंगों पर भी पड़ता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब शनि, मंगल और केतु अशुभ स्थिति में होते हैं या एक-दूसरे के विरोध में होते हैं, तो इसका सीधा असर रीढ़ की हड्डी पर पड़ता है। इससे व्यक्ति को पीठ दर्द, झुकाव और स्पाइनल गैप जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
शनि और मंगल का सीधा संबंध ज्योतिष के अनुसार, शनि हड्डियों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि मंगल मांसपेशियों और शरीर की ऊर्जा से जुड़ा ग्रह है। जब ये दोनों ग्रह आपस में टकराव या दृष्टि संबंध में होते हैं, तो शरीर के निचले हिस्से, विशेष रूप से कमर और रीढ़ में तनाव या दर्द उत्पन्न होता है। यदि ये ग्रह कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हों, तो ‘लोअर बैक स्ट्रेस’ की स्थिति बन जाती है, जिससे व्यक्ति को लगातार दर्द या अकड़न की शिकायत होती है।
आठवें और बारहवें भाव का असर कुंडली का आठवां भाव शरीर के जोड़ और हड्डियों से जुड़ा होता है। इस भाव में शनि, मंगल या राहु के पीड़ित होने पर रीढ़ से जुड़ी विकृतियां हो सकती हैं। वहीं बारहवां भाव शरीर के निचले हिस्से का प्रतीक होता है। अगर इस स्थान पर केतु मौजूद हो, तो टेलबोन या सैक्रल एरिया में दर्द, गैप या कमजोरी की संभावना बढ़ जाती है।
केतु और नक्षत्रों का प्रभाव केतु को ‘रिक्तता’ या खालीपन का ग्रह कहा गया है। जब यह लग्न, आठवें या बारहवें भाव से जुड़ता है, तो यह रीढ़ की संरचना में स्पेस या असंतुलन पैदा कर सकता है। शतभिषा, मूल और अश्विनी नक्षत्रों में शनि या केतु की उपस्थिति होने पर रीढ़ संबंधी परेशानियां और भी बढ़ सकती हैं।
राहत और उपाय यदि आपकी कुंडली में शनि, मंगल या केतु से जुड़े दोष हैं, तो कुछ सरल उपायों से राहत मिल सकती है। शनि दोष के लिए: शनिवार को तिल के तेल का दीपक जलाएं और पीपल के नीचे जल चढ़ाएं। मंगल दोष के लिए: मंगलवार को गुड़ और मसूर दान करें। केतु दोष के लिए: नारियल दान करें और गणपति की उपासना करें। साथ ही, योगिक अभ्यास जैसे सेतुबंधासन, भुजंगासन और शशांकासन रीढ़ को मजबूत बनाते हैं और रक्त प्रवाह में सुधार करते हैं।