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स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय को समर्पित पवित्र पर्व, संतान और धन की प्राप्ति के लिए खास

2 months ago
Written By: Aniket Prajapati

हर महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व भगवान कार्तिकेय के लिए समर्पित है, जिन्हें स्कंद, कुमार, मुरुगन या सुब्रह्मण्य के नाम से भी जाना जाता है। खासतौर पर दक्षिण भारत में इसे बड़े श्रद्धा और विधि-विधान के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूजा और व्रत करने से संतान सुख, संतान की लंबी आयु, शत्रुओं पर विजय और धन-वैभव की प्राप्ति होती है। स्कंद षष्ठी के दिन कथा सुनने का भी विशेष महत्व है। बिना कथा के व्रत अधूरा माना जाता है।

स्कंद षष्ठी का महत्व
स्कंद पुराण में इस पर्व की कथा का विस्तार से वर्णन है। इसके अनुसार, शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को ही भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। वे एक महान योद्धा थे, जिन्होंने दैत्य तारकासुर का वध कर तीनों लोकों में धर्म की स्थापना की। स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से ब्रह्महत्या जैसे गंभीर पापों से भी मुक्ति मिल सकती है।

स्कंद षष्ठी व्रत की कथा
कथा के अनुसार, प्राचीन काल में दैत्य तारकासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। प्रसन्न होकर शिव ने उसे वरदान दिया कि उसका वध केवल उनके पुत्र के हाथों ही संभव होगा। वरदान के बाद तारकासुर ने तीनों लोकों में उत्पात मचाया। देवता परेशान होकर ब्रह्मा जी के पास गए और उन्होंने कहा कि तारकासुर का वध केवल शिव पुत्र ही कर सकते हैं। इस समस्या का समाधान निकालने के लिए देवताओं ने माता पार्वती (सती का अवतार) और शिव के विवाह की योजना बनाई। प्रेम के देवता कामदेव को भेजा गया, जिन्होंने पुष्प बाण चलाकर शिव में प्रेम की भावना जगाई। शिव क्रोधित होकर अपनी तीसरी आंख खोल दी, जिससे कामदेव भस्म हो गए। लेकिन रति और देवताओं की प्रार्थना पर शिव ने कामदेव को बिना शरीर के जीवित कर दिया और माता पार्वती से विवाह किया।

भगवान कार्तिकेय का जन्म और विजय
विवाह के बाद शिव ने अपनी तीसरी आंख से छह चिंगारियां उत्पन्न कीं। इन्हें अग्नि देवता ने सरवण नदी में ठंडा किया, जिससे छह बच्चों का जन्म हुआ। इनमें पांच लड़कियां और एक लड़का था, जो भगवान कार्तिकेय थे। बड़े होकर कार्तिकेय ने तारकासुर का भयंकर युद्ध कर वध किया और उसके शरीर से प्रकट हुए मोर को अपना वाहन बनाया। देवताओं ने उन्हें सेनापति घोषित किया। इसी कारण शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
स्कंद षष्ठी का धार्मिक महत्व अत्यंत विशेष है। स्कंद पुराण और अन्य प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, इस दिन पूजा और व्रत करने से संतान सुख और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। 14वीं-16वीं शताब्दी के संस्कृत ग्रंथ ‘निर्णयामृत’ में उल्लेख है कि भाद्रपद मास की स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा से ब्रह्महत्या जैसे गंभीर पापों से मुक्ति मिलती है। वहीं, ब्रह्म पुराण के अनुसार, सभी शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर कार्तिकेय की पूजा करने से बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर होता है, स्कंद षष्ठी न केवल भक्तों के लिए धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह परिवार और संतान के कल्याण की कामना का प्रतीक भी है। इस दिन विधि-विधान के साथ व्रत करने और कथा सुनने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

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