Tulsi Vivah Puja Vidhi: देवउठनी एकादशी के अगले दिन मनाया जाएगा शुभ पर्व,
जानिए तिथि, महत्व और पूजा विधि
1 months ago Written By: Ashwani Tiwari
Tulsi Vivah Puja Vidhi: देवउठनी एकादशी के अगले दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्व है, बल्कि इसे सृष्टि में शुभता और समृद्धि के पुनः आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस दिन तुलसी माता, जो देवी लक्ष्मी का स्वरूप हैं, और भगवान शालिग्राम, जो विष्णु के रूप माने जाते हैं, का विवाह विधि-विधान से कराया जाता है। मान्यता है कि तुलसी विवाह के बाद ही सभी शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। इस वर्ष तुलसी विवाह का पर्व 2 नवंबर 2025 (शनिवार) को मनाया जाएगा।
तिथि और शुभ मुहूर्त हिंदू पंचांग के अनुसार, द्वादशी तिथि की शुरुआत 2 नवंबर की सुबह 07:31 बजे से हो रही है और इसका समापन 3 नवंबर की सुबह 05:07 बजे होगा। इस दौरान तुलसी विवाह का आयोजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन घरों, मंदिरों और आश्रमों में विशेष पूजा-अर्चना और भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता है।
तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व धार्मिक ग्रंथों स्कंद पुराण और पद्म पुराण में तुलसी विवाह का विस्तृत वर्णन मिलता है। कहा गया है कि तुलसी माता भगवान विष्णु की प्रियतम हैं और उनके बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होती। तुलसी विवाह को लक्ष्मी-नारायण के दिव्य मिलन का प्रतीक माना गया है, जो सृष्टि में शुभता, प्रेम और सौभाग्य की पुनर्स्थापना करता है। इस व्रत से विवाहित दंपतियों के बीच प्रेम और स्थिरता आती है, जबकि अविवाहितों को योग्य जीवनसाथी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पूजा की तैयारी और आवश्यक सामग्री तुलसी विवाह की शुरुआत सुबह स्नान और शुद्धि से की जाती है। पूजा स्थल को पवित्र कर तुलसी के पौधे को चौकी या मंडप पर स्थापित किया जाता है। पूजा में आवश्यक सामग्री में शामिल हैं भगवान विष्णु का चित्र या शालिग्राम शिला, तुलसी का पौधा, पीले और लाल वस्त्र, गन्ना, नारियल, फूल, सुहाग की सामग्री (सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, बिछिया), धूप, दीपक, पान-सुपारी, पंचामृत, अक्षत, हल्दी-कुमकुम, कलश और रेशमी डोरा।
तुलसी विवाह की विधि सबसे पहले तुलसी माता को जल से स्नान कराकर लाल वस्त्र पहनाए जाते हैं और सुहाग सामग्री से उनका श्रृंगार किया जाता है। भगवान शालिग्राम को गंगाजल से स्नान कराकर पीताम्बर वस्त्र धारण कराए जाते हैं। दोनों को आमने-सामने बैठाकर ॐ तुलस्यै नमः और ॐ शालिग्रामाय नमः मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इसके बाद रेशमी डोरे से दोनों का प्रतीकात्मक मिलन कराया जाता है, जिसे तुलसी विवाह कहा जाता है। अंत में नारियल, पान-सुपारी अर्पित कर कन्यादान की क्रिया की जाती है, आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण के साथ पूजा संपन्न होती है।