क्यों होती हैं हिंदू धर्म में रात की शादियां,
जब हवन दिन में ही करने का नियम है?
1 months ago Written By: अनिकेत प्रजापति
हिंदू धर्म में विवाह को सिर्फ दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का पवित्र मिलन माना गया है। इस संस्कार का सबसे अहम हिस्सा हवन होता है, जिसके चारों ओर दूल्हा-दुल्हन सात फेरे लेते हैं। शास्त्रों में साफ लिखा है कि हवन सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले किया जाना चाहिए, क्योंकि रात को यह वर्जित है। इसके बावजूद आज अधिकतर हिंदू विवाह रात के समय ही होते हैं। आखिर इसका कारण क्या है? आइए जानते हैं धर्म, ज्योतिष और इतिहास से जुड़े इसके सारे पहलू।
रात के हवन की मनाही क्यों? धार्मिक ग्रंथों में रात को अंधकार और नकारात्मक ऊर्जा का समय बताया गया है। इस दौरान तंत्र-मंत्र और आसुरी साधनाएं अधिक प्रभावी मानी जाती हैं। इसलिए यज्ञ या हवन जैसे शुभ कार्य दिन के उजाले में करने का विधान है, ताकि सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा से शुभता बढ़े। शास्त्र कहते हैं कि रात का समय तांत्रिकों और अघोरियों की साधना का होता है, जबकि गृहस्थ लोग ईश्वर से जुड़े कार्य दिन में करें, यह उचित माना गया है।
ब्रह्म मुहूर्त और शुभ ऊर्जा धर्मशास्त्रों में ब्रह्म मुहूर्त को सात्विक और शुभ ऊर्जा से भरा समय बताया गया है। प्राचीन काल में अधिकतर विवाह या धार्मिक संस्कार सुबह या सूर्यास्त के समय संपन्न किए जाते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय वातावरण शांत और ऊर्जा शुद्ध मानी जाती है। आज की पीढ़ी के लिए यह समझना कठिन हो सकता है, लेकिन पुराने समय में इसी कारण दिन की शादी को सबसे पवित्र माना गया था।
ज्योतिषीय कारण: ध्रुव तारा और चंद्र साक्षी रात्रि विवाह की परंपरा के पीछे ज्योतिषीय कारण भी बताए जाते हैं। मान्यता है कि विवाह के समय ध्रुव तारा और चंद्रमा को साक्षी बनाना शुभ होता है। सात फेरों के दौरान दूल्हा-दुल्हन को ध्रुव तारा और सप्तऋषि मंडल दिखाया जाता है। ध्रुव तारा स्थायित्व का प्रतीक है, और यह केवल रात में दिखाई देता है। इसलिए इसे विवाह का साक्षी बनाने के लिए रात का मुहूर्त चुना जाने लगा। वहीं, चंद्र और शुक्र की रात में उपस्थिति प्रेम और सौम्यता का प्रतीक मानी जाती है।
मुगल काल से शुरू हुई रात की शादी की परंपरा इतिहासकारों के अनुसार, मुगल काल में हिंदू समाज के लिए दिन में शादियां करना असुरक्षित था। हमलों और आक्रमणों के डर से लोगों ने अंधेरे में चुपचाप विवाह करना शुरू किया। धीरे-धीरे यह एक सुरक्षा उपाय से निकलकर सामाजिक परंपरा बन गया, जो आज भी जारी है।
उत्तर और दक्षिण भारत में अंतर आज भी दक्षिण भारत के कई राज्य जैसे केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में दिन के उजाले में विवाह को शुभ माना जाता है। जबकि उत्तर भारत में रात्रि विवाह एक सामाजिक परंपरा के रूप में स्थापित हो चुका है।
समय बदला, पर परंपरा कायम रात के हवन का शास्त्रों में निषेध होने के बावजूद, विवाह जैसे शुभ कार्य का रात में होना दर्शाता है कि धार्मिक परंपराएं समय के साथ समाज के अनुसार बदलीं। आज विद्वान भी मानते हैं कि असली शुभता मुहूर्त और भावना में होती है, समय में नहीं।