तिब्बत से मायानगरी तक का सफर: हंगू लामू बनीं ‘लतिका’, राज कपूर और दिलीप कुमार संग किया काम,
फिर अचानक छोड़ दी फिल्मों की दुनिया
1 months ago
कहते हैं, किस्मत कब किसे कहां ले जाए, कोई नहीं जानता। बॉलीवुड में एक ऐसी ही शख्सियत रहीं, जिनकी जिंदगी खुद एक फिल्मी कहानी बन गई। तिब्बत की वादियों से मायानगरी मुंबई तक का सफर तय करने वाली इस एक्ट्रेस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वे एक दिन राज कपूर और दिलीप कुमार जैसे दिग्गजों के साथ पर्दा साझा करेंगी। हम बात कर रहे हैं एक्ट्रेस लतिका की,जिन्हें जिंदगी ने कभी कठिनाइयों में डुबोया, तो कभी प्यार और शोहरत की बारिश से भिगो दिया।
तिब्बत की बेटी, जिसने मुंबई में रचा इतिहास लतिका की कहानी 1940 के दशक में शुरू होती है। उनका जन्म तिब्बत में हुआ था। मां तिब्बती थीं और पिता ऑस्ट्रेलियाई। असली नाम था हंगू लामू। बचपन में ही पिता का साया सिर से उठ गया, और मां ने दूसरी शादी कर ली। छोटी सी उम्र में ही हंगू को मिशनरी आश्रम भेज दिया गया, जहां उन्होंने कठिन हालात में पढ़ाई की और जिंदगी से लड़ना सीखा।
पढ़ाई के लिए बदला धर्म, किस्मत ने बदला रास्ता लतिका की पढ़ाई दार्जिलिंग के स्कॉटिश मिशनरी स्कूल में हुई। यहां दाखिला लेने के लिए उन्हें ईसाई धर्म अपनाना पड़ा। इसी बीच सौतेले पिता का ट्रांसफर मुंबई हो गया और किस्मत ने करवट ली। मुंबई पहुंचकर हंगू का सामना एक नई दुनिया से हुआ। उनके घर के सामने एक कथक डांसर रहती थीं, जिनकी अदाओं और कला ने हंगू को मोह लिया। उन्होंने भी कथक सीखने का निश्चय किया और यही उनकी जिंदगी का निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
ऐसे मिली पहली फिल्म, और मिला नया नाम ‘लतिका’ वही कथक डांसर एक दिन हंगू को लेकर मिनर्वा स्टूडियो पहुंचीं, जहां उनकी मुलाकात हुई प्रसिद्ध फिल्मकार सोहराब मोदी से। मोदी ने उनकी सादगी और सुंदरता देखकर तुरंत कह दिया—“तुम स्क्रीन पर बहुत जचोगी।” उन्होंने हंगू लामू को नया नाम दिया—‘लतिका’, और अपनी फिल्म ‘परख’ (1944) में कास्ट कर लिया। यही से लतिका की फिल्मी यात्रा की शुरुआत हुई। जल्द ही उन्होंने ‘गोपीनाथ’ में राज कपूर के साथ और ‘जुगनू’ में दिलीप कुमार के साथ काम कर अपने अभिनय का जलवा दिखाया।
जब फिल्मी सेट पर मिला प्यार फिल्मों में सफलता के साथ ही लतिका की जिंदगी में आया प्यार। शूटिंग के दौरान उनकी मुलाकात मशहूर एक्टर और कॉमेडियन गोप से हुई, जो उस दौर के बड़े सितारे थे। दोनों की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदली और उन्होंने शादी कर ली। शादी के बाद लतिका ने फिल्मों से दूरी बना ली, और सिनेमा की चमक-दमक छोड़ एक सादगीभरा जीवन चुना।
एक कहानी जो सिनेमा से बड़ी थी लतिका का जीवन इस बात की मिसाल है कि किस्मत जब साथ दे, तो मंज़िलें खुद रास्ता बना लेती हैं। तिब्बत से चली एक लड़की, जिसने अपनी पहचान तक बदली, मुंबई पहुंचकर हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग में अपनी जगह बना गई। लतिका भले ही आज फिल्मों की दुनिया से दूर हों, लेकिन उनकी कहानी आज भी याद दिलाती है कि हर इंसान के भीतर एक फिल्म चलती है—बस ज़रूरत होती है उसे जीने की हिम्मत की।