जिस डल झील के शिकारों में छाए शमी कपूर,
वहां के थिएटरों पर हमलों से लेकर पहलगाम तक कितना बदला कश्मीर
2 months ago
Written By: Entertainment Desk
एक समय था जब कश्मीर की खूबसूरत वादियाँ हिंदी सिनेमा की जान हुआ करती थीं। 1964 में जब 'कश्मीर की कली' रिलीज़ हुई, तो शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर की वो शिकारे वाली रोमांटिक कहानी ने पूरे देश को कश्मीर से प्यार करा दिया। उस वक्त कश्मीर सिर्फ एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन नहीं था, बल्कि फिल्मों का दिल था। श्रीनगर में रीगल, ब्रॉडवे, नीलम एक से बढ़कर एक सिनेमाघर थे। लोग घंटों पहले टिकट खरीदने के लिए कतारों में लगते थे।
कश्मीर में छाए थे शमी कपूर
शमी कपूर की फिल्मों से लेकर हर फ्रेम में डल झील के शिकारे, गुलमर्ग की बर्फीली ढलानें और चिनार के पेड़ नजर आते थे। 1960 के दशक में कश्मीर बॉलीवुड का पसंदीदा शूटिंग स्थल था, जहां पर 'जब जब फूल खिले', 'हकीकत', 'बेताब' जैसी फिल्मों की शूटिंग हुई। श्रीनगर में 19 सिनेमाघर थे, जिनमें से नौ अकेले लाल चौक के आसपास थे।
कश्मीर में आतंक की शुरुआत
साल 1989 में सब कुछ बदल गया। ये वही समय था जब आतंकवादियों ने कश्मीर में पैर पसारना शुरू कर दिया था। जिसके बाद उन्होने सिनेमा को 'गैर-इस्लामिक' घोषित कर दिया। 'अल्लाह टाइगर्स' जैसे संगठनों ने सिनेमा हॉल्स और शराब की दुकानों को निशाना बनाया। रीगल, नीलम और ब्रॉडवे जैसे सिनेमाघर बंद हो गए। 1999 में रीगल सिनेमा पर ग्रेनेड हमला हुआ, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई। 2005 में नीलम सिनेमा में 'मंगल पांडे' फिल्म के दौरान फिदायीन हमला हुआ और इन सभी घटनाओं ने ने कश्मीर में सिनेमा कल्चर को लगभग समाप्त कर दिया।
फिल्मों से कश्मीरियों का अटूट प्यार
कश्मीरियों का फिल्मों से प्यार कभी खत्म नहीं हुआ। लोग पायरेटेड सीडी और केबल टीवी के जरिए फिल्में देखते रहे। लेकिन सिनेमाघर में जाकर फिल्म देखने का अनुभव, लोगों के साथ मिलकर तालियों को बजाना और साथ में इमोशनल होना, ये सब कुछ खो सा गया। फिर 26 अप्रैल 2025 को, श्रीनगर के फिल्मी दुनिया में एक नई सुबह हुई। एक बार फिर किसी फिल्म का कश्मीर मे रेड कार्पेट प्रीमियर हुआ। यह फिल्म संसद हमले के मुख्य षड्यंत्रकारी गाजी बाबा को मार गिराने के मिशन पर आधारित है। इमरान हाशमी ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई है। प्रीमियर विशेष रूप से पुलिस और बीएसएफ के जवानों के लिए आयोजित किया गया था। आज श्रीनगर में TIFFS और Kashmir World Film Festival जैसे इवेंट्स हो रहे हैं। लोकल फिल्ममेकर्स, एक्टर्स, क्रिटिक्स अब खुलकर अपनी क्रिएटिविटी दिखा रहे हैं।
पहलगाम हमले का पर्यटकों पर असर
इसी बीच, पहलगाम में एक भीषण आतंकी हमला हुआ, जिसमें 27 टूरिस्ट मारे गए, जिनमें अधिकांश हिंदू थे। इस आतंकी हमले ने कश्मीर के टूरिज़्म पर बहुत बुरा असर डाला है । कश्मीर जाने वाले बहुत से पर्यटकों ने अपनी बुकिंग कैंसिल करा ली है। जिसके बाद डल झील के वो शिकारे, वहाँ के लोगों के चेहरे कि मुस्कान अब सब गायब हो गई है। कश्मीर जो कभी शूटिंग के लिए जाना जाता था जहां पर शमी कपूर जैसे दिग्गज एक्टरों ने शिकारों को चलाया है आज वही एकदम शांत हैं।
पहलगाम हमले में पाकिस्तान का हाथ
भारत ने पाकिस्तान पर इस हमले के लिए समर्थन का आरोप लगाया, जबकि पाकिस्तान ने किसी भी संलिप्तता से इनकार किया। इस घटना ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को और बढ़ा दिया, जिससे कश्मीर में पर्यटन और सांस्कृतिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इस हमले के बाद, भारत ने पाकिस्तान के साथ अपने राजनयिक संबंधों को घटा दिया और 1960 के सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया। पाकिस्तान ने इसे 'युद्ध का कार्य' बताया। दोनों देशों के बीच सीमा पर गोलीबारी की घटनाएं भी हुईं।
कश्मीर में सिनेमा का नया युग
इस आतंकी हमले के बाद कश्मीर के टूरिज़्म पर बहुत बुरा असर डाला है इस तनावपूर्ण माहौल में, कश्मीर में सिनेमा और सांस्कृतिक गतिविधियों की पुनः शुरुआत एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। कश्मीर में सिनेमा की वापसी एक उम्मीद की किरण है, लेकिन इसके सामने कई चुनौतियाँ हैं। फिर भी, 'ग्राउंड जीरो' का प्रीमियर इस बात का संकेत है कि कश्मीर में सिनेमा की लौ फिर से जल सकती है। कश्मीर में एक बार फिर शांति बहाल हो सकती है। शम्मी कपूर के कश्मीर से लेकर 'ग्राउंड जीरो' के प्रीमियर तक, यह यात्रा कश्मीर के सिनेमा के उत्थान, पतन और पुनरुत्थान की कहानी है। आज कश्मीर के ये हालत बताते है कि कैसे एक क्षेत्र, जिसने कभी सिनेमा को गले लगाया था।