गुलशन देवैया फैशन डिजाइनर से बने दमदार एक्टर,
शाहरुख की पार्टी से ‘कांतारा चैप्टर वन’ तक का सफर
2 months ago Written By: ANIKET PRAJAPATI
बेंगलुरु से मुंबई तक का गुलशन देवैया का सफर आसान नहीं था। लेकिन उन्होंने कभी अपने सपनों से समझौता नहीं किया। फैशन इंडस्ट्री से थिएटर और फिर सिनेमा तक पहुंचने वाले गुलशन ने मेहनत, ईमानदारी और संवेदनशीलता से अपनी अलग पहचान बनाई।गुलशन कहते हैं, "तीन फिल्मों के नॉमिनेशन मिले, पर अवॉर्ड नहीं। पर असली इनाम तब मिला जब दर्शकों ने मेरे काम को सराहा।" उनके मुताबिक फिल्म इंडस्ट्री में सफलता ट्रॉफी से नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और सच्चाई से मापी जाती है। अनुराग कश्यप जैसे फिल्मकारों का भरोसा और काम के दौरान आने वाली चुनौतियां ही उनकी सबसे बड़ी सीख रहीं। गुलशन को शाहरुख खान की पार्टी का एक किस्सा हमेशा याद रहता है। वह कहते हैं, “शाहरुख के छोटे-छोटे जेस्चर बताते हैं कि स्टारडम का असली मतलब विनम्रता है।” उनके लिए असली सफलता नाम या पैसा नहीं, बल्कि मन की शांति और ईमानदारी से जीवन जीना है। इन दिनों वह ‘कांतारा चैप्टर वन’ की सफलता का आनंद ले रहे हैं।
फैशन डिजाइनर से थिएटर के मंच तक 28 मई 1978 को बेंगलुरु में जन्मे गुलशन देवैया के पिता देवैया BEL में काम करते थे, जबकि मां पुष्पलता थिएटर आर्टिस्ट थीं। उन्होंने क्लूनी कॉन्वेंट और सेंट जोसेफ इंडियन हाई स्कूल से पढ़ाई की और फिर NIFT से फैशन डिजाइन में डिग्री ली। करीब 10 साल तक फैशन इंडस्ट्री में काम करने के बाद गुलशन ने महसूस किया कि उनका दिल एक्टिंग में बसता है। उन्होंने बेंगलुरु में अंग्रेजी थिएटर से छोटे-छोटे रोल किए और यहीं से एक्टिंग का असली सफर शुरू हुआ। 30 की उम्र में उन्होंने मुंबई का रुख किया, जहां उन्होंने थिएटर से अभिनय की बारीकियां सीखी। बिना किसी एक्टिंग स्कूल में गए, किताबों और अनुभवों से खुद को तैयार किया।
मुंबई की गलियों से मिला पहला मौका मुंबई पहुंचने के बाद गुलशन को अपनी पहली फिल्म ‘दैट गर्ल इन येलो बूट्स’ (2010) अनुराग कश्यप के जरिए मिली। वह याद करते हैं, “एक दिन ऑडिशन खराब गया था, मैं वर्सोवा की गलियों में घूम रहा था। तभी कल्कि का फोन आया और उन्होंने अनुराग से मिलने बुलाया। उन्होंने एक सीन समझाया और कहा कि जब तैयार हो, ऑडिशन दे देना। तीन-चार दिन बाद गया, उन्हें पसंद आया और मुझे फिल्म मिल गई।”
ईमानदारी से जीने की कला गुलशन देवैया का मानना है कि मुंबई की चमकदार दुनिया में सच्चा बने रहना सबसे बड़ी चुनौती है। लेकिन अगर इंसान अपनी जड़ों से जुड़ा रहे तो पहचान देर-सबेर मिल ही जाती है। बेंगलुरु से मुंबई तक उनके सफर में यही सबसे बड़ी सीख रही आत्मविश्वास, संवेदना और सच्चाई। उनका कहना है, “मैंने तय किया था कि बनावटीपन से दूर रहूंगा। गॉसिप या राय मेरे रास्ते को तय नहीं करेगी। मेरे लिए करियर का मतलब है आजादी अपनी राह खुद चुनने की स्वतंत्रता।”