मेजर शैतान सिंह भाटी की विरासत:
पोती रश्मि ने बताई शहीद परिवार की अनसुनी कहानियां
8 days ago Written By: अनिकेत प्रजापति
“120 बहादुर” फिल्म के बाद मेजर शैतान सिंह भाटी की बहादुरी फिर चर्चा में आ गई है। फिल्म में उनकी शौर्यगाथा दिखाई गई, लेकिन असल कहानी और परिवार पर असर क्या रहा — यह कम लोग ही जानते हैं। मेजर भाटी की पोती रश्मि सिंह से किए गए विशेष इंटरव्यू में परिवार की चुनौतियाँ, दादीसा का संघर्ष, पिता की परिपक्वता, पेंशन से जुड़ी परेशानी और आज की पीढ़ी का समाज सेवा में बदलते कदम के बारे में सब कुछ सामने आया। यह बातचीत सिर्फ एक शहीद की गाथा नहीं, बल्कि उसके पीछे जीती जा रही एक पूरी पीढ़ी की कहानी है।
दादोसा का प्रभाव और परिवार की जिंदादिली रश्मि बताती हैं कि मेजर भाटी का प्रभाव घर पर सिर्फ इतिहास नहीं, नैतिक आधार रहा। उनकी वीरता ने परिवार को अनुशासन, सच्चाई और देशभक्ति सिखाई। बचपन में सुनाईं गई कहानियाँ आज भी परिवार को मार्गदर्शित करती हैं।
विधवा दादीसा का अकेला संघर्ष शहीद होने के बाद दादीसा को अकेले परिवार संभालना पड़ा। युवा युद्ध–विधवा के रूप में उन्हें सामाजिक और आर्थिक दबाव झेलने पड़े। 15 साल के बेटे को पढ़ाई छोड़कर घर संभालना पड़ा। दादीसा ने अपने दर्द को संबल बनाकर बेटे और घर को आगे बढ़ाया।
पेंशन और प्रशासनिक परेशानियाँ रश्मि कहती हैं कि उस दौर में सैन्य पेंशन की प्रक्रिया व्यवस्थित नहीं थी। मेजर की शहादत के बावजूद परिवार को केवल सामान्य फैमिली पेंशन मिली और कई दस्तावेजी देरी से आर्थिक मुश्किलें बनीं। यह उस समय की प्रशासनिक सीमाओं का नतीजा था।
आखिरी खत और दादीसा की आशा मेजर का आखिरी पत्र दादीसा के लिए उम्मीद बन गया था। साधारण शब्दों में लिखा वह पत्र दादीसा को कुछ समय के लिए सुकून दे गया और उनकी यादों में आज भी खास है।
मेजर का मानवीय रूप और युद्ध की बहादुरी फौजी जीवन के अलावा मेजर शांत, मिलनसार और टीम प्लेयर थे। गांव में कपूत चोरों से लड़ने की घटना उनकी रणनीति और पराक्रम की मिसाल है। परिवार कहता है कि उनकी इंसानियत ही उनकी बहादुरी की जड़ थी।
पर्दे पर चित्रण और परिवार की प्रतिक्रिया रश्मि मानती हैं कि दो घंटे की फिल्म में मेजर की पूरी व्यक्तित्व समाना मुश्किल है, पर फरहान अख्तर ने ईमानदारी से कोशिश की। फिल्म देखकर परिवार गर्व और भावुक दोनों हुआ।
आज की पीढ़ी: शिक्षा और समाज सेवा मेजर की अगली पीढ़ी ने सेवा को लिया। रश्मि की बड़ी बेटी निर्विरोध सरपंच बनीं और गांव में कंप्यूटर स्कूल चलाती हैं। रश्मि ने Foutribags नाम से ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का प्लेटफॉर्म बनाया। उनकी cousin ऋतु इंटीरियर डिज़ाइनर होते हुए NGO से जुड़ी और समाज सेवा में सक्रिय हैं। परिवार की यह राह मेजर की विरासत को आगे बढ़ा रही है।