भविष्य में कम होती डिग्री की वैल्यू हार्वर्ड की रिपोर्ट ने बताई,
10 कोर्सेज जो अब नहीं दे रहे अच्छा रिटर्न
10 days ago Written By: Aniket Prajapati
स्कूल की पढ़ाई खत्म होते ही सबसे बड़ा सवाल यही होता है कि कॉलेज में कौन-सा कोर्स चुना जाए। यही फैसला हमारे करियर की दिशा और आने वाले सालों में मिलने वाले रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (ROI) को तय करता है। लेकिन अब एक नई रिपोर्ट ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के लेबर इकोनॉमिस्ट डेविड जे. डेमिंग और कदीम नोरे की स्टडी के मुताबिक, इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस और बिजनेस जैसी बड़ी और पारंपरिक डिग्रियां अब अपनी पुरानी चमक खो रही हैं। तेजी से बदलते टेक्नोलॉजी सेक्टर और इंडस्ट्री की जरूरतों के कारण अब सिर्फ डिग्री हासिल करना काफी नहीं है। मार्केट में अब अपस्किलिंग और स्पेशलाइज्ड स्किल्स की मांग बढ़ गई है। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल की रिपोर्ट के अनुसार, एम्प्लॉयर्स अब ‘जेनरिक डिग्री’ की जगह ऐसे उम्मीदवारों को प्राथमिकता दे रहे हैं जिनके पास प्रैक्टिकल और इंडस्ट्री-रेडी स्किल्स हों। इस ट्रेंड को ‘डिग्री रीसेट’ कहा जा रहा है। यानी वो डिग्रीज जिनमें थ्योरी तो है, लेकिन अपस्किलिंग की गुंजाइश नहीं, उनकी वैल्यू तेजी से घट रही है।
ये 10 डिग्रियां जिनकी घट रही है वैल्यू अब स्टूडेंट्स आर्ट्स और सोशल साइंस की जगह STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ्स) और एप्लाइड फील्ड्स की तरफ बढ़ रहे हैं। हार्वर्ड की रिपोर्ट और 2025 की मार्केट ट्रेंड्स के मुताबिक, नीचे दी गईं 10 डिग्रियां हैं जिनकी लॉन्ग-टर्म वैल्यू तेजी से गिर रही है...
जनरल बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA सहित)
एमबीए जैसी बिजनेस डिग्री अब ओवरसप्लाई में हैं। ग्रेजुएट्स की बढ़ती संख्या और एम्प्लॉयर्स की बदलती प्राथमिकताओं के कारण इसका ROI घट गया है। यहां तक कि टॉप कॉलेज से एमबीए करने वालों को भी हाई-लेवल जॉब पाना पहले जितना आसान नहीं रहा।
कंप्यूटर साइंस
एंट्री लेवल पर भले ही सैलरी अच्छी हो, लेकिन टेक्नोलॉजी के तेज़ी से बदलते ट्रेंड्स के कारण स्किल्स जल्दी अप्रचलित हो जाती हैं। अब कंपनियां जनरल कोडिंग एक्सपर्ट्स की जगह एआई और मशीन लर्निंग स्किल्स वालों को प्राथमिकता दे रही हैं।
मैकेनिकल इंजीनियरिंग
ऑटोमेशन और रोबोटिक्स के दौर में पारंपरिक इंजीनियरिंग रोल्स घट रहे हैं। मैन्युफैक्चरिंग अब मशीनों और ऑफशोर लेबर पर निर्भर होती जा रही है, जिससे इस फील्ड की मांग कम हो रही है।
अकाउंटिंग (Accounting)
अब कई अकाउंटिंग और ऑडिटिंग टास्क्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन से किए जा रहे हैं। इस वजह से मानव श्रम की ज़रूरत पहले से काफी कम हो गई है।
बायोकेमिस्ट्री (Biochemistry)
यह एक अत्यधिक स्पेशलाइज्ड विषय है, लेकिन इसके ग्रेजुएट्स को तब तक हाई सैलरी जॉब नहीं मिलती जब तक वे एडवांस स्टडी या रिसर्च में न जाएं।
साइकोलॉजी (Psychology - स्नातक स्तर)
केवल ग्रेजुएशन स्तर पर साइकोलॉजी की पढ़ाई करने वालों के लिए करियर के विकल्प सीमित हैं। अच्छा रिटर्न पाने के लिए मास्टर्स या पीएचडी जरूरी होती है।
इंग्लिश और ह्यूमैनिटीज
नामांकन में गिरावट और करियर के सीमित विकल्पों के चलते इस फील्ड की वैल्यू लगातार घट रही है। मार्केट में इसकी डायरेक्ट डिमांड कम है।
सोशियोलॉजी और सोशल साइंस
इन सब्जेक्ट्स का जॉब मार्केट से डायरेक्ट कनेक्शन कमजोर होता जा रहा है। इस कारण छात्रों को शुरुआती करियर में इंटीग्रेशन की दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं।
हिस्ट्री (History)
इतिहास के क्षेत्र में करियर के मौके सीमित हैं। मिड-करियर में सैलरी ग्रोथ भी अन्य प्रोफेशन की तुलना में कम रहती है, जिससे इसका ROI घट जाता है।
फिलॉसफी (Philosophy)
भले ही यह विषय क्रिटिकल थिंकिंग जैसी स्किल्स सिखाता है, लेकिन यह स्किल मार्केट में सीधे रूप से कैश नहीं हो पाती। इसलिए इसका करियर वैल्यू कम होती जा रही है।