ऐसा गांव जहां नहीं हैं एक भी मुस्लिम परिवार…मस्जिद से हिन्दू देते हैं आजान,
करते हैं पूरी देख-भाल
6 days ago Written By: आदित्य कुमार वर्मा
भारत में अक्सर हमें मंदिर–मस्जिद विवाद और हिन्दू–मुस्लिम तनाव की खबरें सुनने को मिलती हैं। कहीं यह सवाल उठता है कि यहां पहले मंदिर था या मस्जिद, तो कहीं धार्मिक पहचान के आधार पर बहस छिड़ जाती है। लेकिन इन सबके बीच बिहार का एक गांव ऐसा भी है, जो इंसानियत और सांस्कृतिक धरोहर की मिसाल पेश करता है। यहां एक भी मुस्लिम आबादी नहीं है, फिर भी मस्जिद की देखभाल हिन्दू लोग करते हैं और उस मस्जिद से हर दिन अज़ान की आवाज़ गूंजती है।
मगध की ऐतिहासिक धरोहर पटना के पास का इलाका, जो प्राचीन काल में मगध के नाम से प्रसिद्ध था, आज भी अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को संभाले हुए है। यहां कई गांवों में मुसलमान आबाद नहीं हैं, लेकिन पुरानी मस्जिदें अब भी खड़ी हैं। इन मस्जिदों की देखभाल स्थानीय लोग करते हैं और अज़ान भी गूंजती है।
हिन्दू समाज की पहल इन मस्जिदों को संभालने का जिम्मा किसी संस्था ने नहीं, बल्कि खुद दिहाड़ी मजदूरी करने वाले हिन्दू परिवारों ने उठाया है। वे अपनी जेब से मरम्मत कराते हैं, सफाई करते हैं और मस्जिद को रोशन बनाए रखते हैं। उनके लिए यह काम केवल इबादतगाह की देखभाल नहीं, बल्कि इंसानियत और सांस्कृतिक धरोहर की सेवा है। अजय, जो पेशे से मजदूर हैं, बताते हैं, "हमने यह सब अपने खर्च पर किया। पहले मस्जिद वीरान लगती थी, तो हमने सोचा क्यों न इसे संवारें। फर्श सुधारा, जंगल साफ किया, पुताई की। फिर सोचा कि अल्लाह का घर रोशन रहना चाहिए, तो शाम को बाती जलानी और अगरबत्तियां चढ़ानी शुरू की। आखिरकार, अज़ान की आवाज़ जरूरी लगी, तो लाउडस्पीकर लाकर पेन ड्राइव से अज़ान दिलवाना शुरू किया। हमें संतोष मिला कि अल्लाह ने हमें यह मौका दिया।"
मस्जिदों का अतीत और वर्तमान मगध क्षेत्र- जिसमें पटना, गया, नालंदा, नवादा, शेखपुरा और अरवल जिले शामिल हैं- में कभी मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी थी। पुरानी मस्जिदें इसका गवाह हैं। आज इनमें से कुछ मस्जिदें खंडहर बन चुकी हैं, कुछ अतिक्रमण का शिकार हो गईं, जबकि कुछ को लोग गोशाला की तरह इस्तेमाल करने लगे। लेकिन जहां लोग इन्हें बचाए रखने में जुटे हैं, वहां यह विरासत अब भी जीवित है।
इतिहास की छाया इतिहासकार इम्तियाज़ अहमद बताते हैं कि 1946 के नोआखली दंगों का असर बिहार तक पहुँचा था। उस समय बिहार में राजनीतिक तनाव भी बढ़ रहा था। कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच टकराव ने ध्रुवीकरण को हवा दी। बड़े मुस्लिम ज़मींदार और जमीन पर कब्जे की राजनीति ने हालात और बिगाड़ दिए। इसी दौर में मगध के कई गांवों से मुसलमानों का पलायन हुआ और मस्जिदें वीरान होती चली गईं।