भारत की 'सागर-नीति' से हिल गया ड्रैगन,
ग्रेट निकोबार से टूटेगा चीन का घेराबंदी गेम
10 days ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के दक्षिणी छोर पर स्थित ग्रेट निकोबार इन दिनों सुर्खियों में है। केंद्र सरकार यहां 72,000 करोड़ रुपये की लागत से एक मेगा डेवलपमेंट प्रोजेक्ट शुरू करने जा रही है, जिसे ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट नाम दिया गया है। सरकार का दावा है कि इस प्रोजेक्ट के जरिए भारत न केवल एक अत्याधुनिक ग्लोबल बिजनेस हब तैयार करेगा बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी सामरिक पकड़ भी मजबूत करेगा। वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस समेत विपक्षी दल इसे पर्यावरण और जनजातीय अधिकारों के लिए खतरा बता रहे हैं। इस प्रोजेक्ट को लेकर राजनीतिक हलकों में जबरदस्त घमासान मचा हुआ है।
सुनामी की तबाही से भविष्य के हांगकांग तक
ग्रेट निकोबार का जिक्र आते ही 26 दिसंबर 2004 की भयावह सुनामी की तस्वीरें सामने आ जाती हैं। उस दिन रिक्टर स्केल पर 9.3 की तीव्रता का भूकंप आया था और उसके बाद आई सुनामी ने 12 देशों में तबाही मचा दी थी। हजारों लोग मारे गए, सैकड़ों गांव समंदर में समा गए और ग्रेट निकोबार की पहचान एक त्रासदी के केंद्र के रूप में बन गई। लेकिन अब, दो दशक बाद, केंद्र सरकार इसी जमीन को एक नए रूप में बदलने की तैयारी में है। मोदी सरकार का दावा है कि आने वाले समय में ग्रेट निकोबार भारत का हांगकांग बनेगा, जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर का इंफ्रास्ट्रक्चर, व्यापारिक केंद्र और सामरिक ठिकाने विकसित किए जाएंगे।
केंद्र का महत्वाकांक्षी ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2021 में इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की शुरुआत की। यह प्रोजेक्ट ग्रेट निकोबार द्वीप पर 910 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में विकसित किया जा रहा है, जो भारत की मुख्यभूमि से करीब 1,800 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। यहां एक डीप सी पोर्ट, एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट, अत्याधुनिक स्मार्ट सिटी और 450 मेगावॉट की गैस और सौर ऊर्जा परियोजना बनाई जा रही है। सरकार का मानना है कि यह प्रोजेक्ट न केवल ग्रेट निकोबार को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करेगा, बल्कि भारत को अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार में एक महत्वपूर्ण स्थान भी दिलाएगा। इस प्रोजेक्ट का सामरिक महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ग्रेट निकोबार द्वीप इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप से मात्र 170 किलोमीटर दूर है। यहां स्थित इंदिरा पॉइंट भारत का सबसे दक्षिणी छोर है, जो हिंद महासागर और मलक्का जलडमरूमध्य के बेहद करीब है। यही कारण है कि सरकार इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय सुरक्षा और समुद्री रणनीति के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण मान रही है।
अंडमान-निकोबार की भौगोलिक और सांस्कृतिक विरासत
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह कुल 836 द्वीपों से मिलकर बना है। इसमें उत्तर में अंडमान द्वीप और दक्षिण में निकोबार द्वीप समूह आते हैं। ग्रेट निकोबार द्वीप पर दो नेशनल पार्क, एक बायोस्फियर रिजर्व और घने उष्णकटिबंधीय जंगल मौजूद हैं। यहां की जैव विविधता अनोखी है और कई दुर्लभ वनस्पतियों व प्रजातियों का घर यही द्वीप है। इसके अलावा, ग्रेट निकोबार की पहचान यहां की प्राचीन जनजातियों के कारण भी है। शौंपेन, ओंगे, अंडमानी और निकोबारी जैसी आदिवासी जनजातियां आज भी अपनी पारंपरिक जीवन शैली के साथ यहां निवास करती हैं। फिलहाल इस द्वीप की कुल जनसंख्या लगभग 8,000 है, जिनमें आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों शामिल हैं। यही वजह है कि इस प्रोजेक्ट के खिलाफ आदिवासी संगठनों और पर्यावरणविदों की आवाज लगातार तेज हो रही है।
सामरिक दृष्टि से ग्रेट निकोबार की अहमियत
ग्रेट निकोबार का महत्व केवल विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी असली ताकत इसके सामरिक महत्व में छुपी है। हिंद महासागर के मध्य स्थित यह द्वीप भारत के लिए समुद्री सुरक्षा का प्रमुख आधार बन सकता है। यहां से भारत मलक्का जलडमरूमध्य की निगरानी आसानी से कर सकता है। यह वही जलडमरूमध्य है, जहां से एशिया, अफ्रीका और यूरोप के बीच होने वाला करीब 90% वैश्विक व्यापार गुजरता है। इस प्रोजेक्ट के जरिए भारत अपने जंगी जहाजों, पनडुब्बियों, फाइटर जेट्स और मिसाइल सिस्टम की तैनाती को मजबूत कर सकेगा। इससे भारत की नौसैनिक ताकत हिंद महासागर क्षेत्र में और ज्यादा प्रभावी हो जाएगी। खास बात यह है कि यह इलाका चीन की गतिविधियों की निगरानी के लिए भी आदर्श साबित हो सकता है।
भारत-चीन के बीच रणनीतिक मुकाबला
चीन लंबे समय से हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी सैन्य और व्यापारिक मौजूदगी को बढ़ा रहा है। उसने मलक्का जलडमरूमध्य, सुंडा और लंबक जैसे प्रमुख समुद्री मार्गों पर अपनी नौसैनिक उपस्थिति को मजबूत किया है। इसके अलावा, चीन ने म्यांमार के कोको द्वीप पर मिलिट्री फैसिलिटी भी तैयार कर ली है, जो ग्रेट निकोबार से महज 55 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत के लिए यह स्थिति चिंता का विषय है क्योंकि चीन की यह रणनीतिक घेरेबंदी भविष्य में भारत की समुद्री सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकती है। ऐसे में, ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट के जरिए भारत न केवल अपनी समुद्री सीमाओं की रक्षा कर सकेगा बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सक्रियता पर भी नजदीकी नजर रख पाएगा।
विपक्ष का विरोध और पर्यावरणीय चिंता
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल इस प्रोजेक्ट के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक लेख लिखकर आरोप लगाया कि यह प्रोजेक्ट ग्रेट निकोबार की जैव विविधता और प्राकृतिक धरोहर को बर्बाद कर देगा। वहीं, राहुल गांधी ने भी कहा कि इस प्रोजेक्ट से यहां की आदिवासी जनजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। विपक्ष का तर्क है कि जिस क्षेत्र में यह मेगा प्रोजेक्ट बनाया जा रहा है, वहां के मूंगे की चट्टानें, घने जंगल और वन्य जीव गंभीर रूप से प्रभावित होंगे। आदिवासी संगठनों का आरोप है कि यह प्रोजेक्ट उनकी परंपरा, संस्कृति और आजीविका के लिए खतरा है।