मालेगांव ब्लास्ट केस में पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर बरी, नहीं मिले सबूत,
इन बड़े राजनीतिक नामों पर भी थे आरोप
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
मुंबई की एक विशेष एनआईए अदालत ने 31 जुलाई 2025 को 2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में आज 17 साल बाद अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया, जिसमें सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया गया। यह फैसला एक ऐसे मामले का पटाक्षेप है, जो न सिर्फ कानूनी बल्कि राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी बेहद संवेदनशील माना जाता रहा है।
क्या था पूरा मामला
29 सितंबर 2008 को रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान मालेगांव के एक मुस्लिम बहुल इलाके में हुए इस धमाके ने देश को झकझोर दिया था। विस्फोट एक व्यस्त चौक पर हुआ, जिसमें छह लोगों की मौत हुई और 95 लोग घायल हुए। शुरुआत में घायलों की संख्या 101 बताई गई थी, लेकिन अदालत ने माना कि कुछ मेडिकल प्रमाणपत्रों में हेरफेर की गई थी और असल आंकड़ा 95 ही था। इस धमाके की टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठे क्योंकि यह घटना रमज़ान के आखिरी दिनों और हिंदुओं के नवरात्रि पर्व से ठीक पहले हुई थी, जिससे सांप्रदायिक तनाव की आशंका जताई गई थी।
कब किसने की जांच, कौन थे बड़े नाम
इस केस की जांच पहले महाराष्ट्र एंटी टेररिज़्म स्क्वॉड (ATS) ने की थी, लेकिन 2011 में इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया। यह भारत का पहला आतंकवादी मामला था जिसमें कथित रूप से हिंदू विचारधारा से जुड़े लोगों को आरोपी बनाया गया था। जिन सात लोगों को आरोपी बनाया गया, उनमें प्रमुख नाम थे, पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, अजय रहीरकर, समीर कुलकर्णी, सुधाकर चतुर्वेदी और सुधाकर धर द्विवेदी।
क्या लगी धाराएं
जिसके बाद इन सभी पर आतंकवाद निरोधक कानून (UAPA) की धारा 16 और 18 के तहत आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने और उसकी साजिश रचने के आरोप थे। इसके अलावा आईपीसी की कई गंभीर धाराएँ जैसे हत्या, हत्या की कोशिश, सांप्रदायिक विद्वेष फैलाना और आपराधिक साजिश भी लगाई गई थीं।
बदले की भावना से घटना की आशंका
महाराष्ट्र एटीएस की जांच के अनुसार, इन आरोपियों ने "बदला लेने" की भावना से कथित रूप से मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के लिए साजिश रची थी। एजेंसी ने दावा किया था कि धमाके की योजना भोपाल, इंदौर और अन्य शहरों में हुई बैठकों में बनाई गई थी। जांच में यह भी सामने आया कि विस्फोट में जिस मोटरसाइकिल का इस्तेमाल हुआ था, वह प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड थी। हालांकि अदालत ने साफ कर दिया कि अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि विस्फोट में प्रयुक्त मोटरसाइकिल वास्तव में प्रज्ञा ठाकुर के पास थी या उसकी जानकारी में उसका उपयोग हुआ।
कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला
वहीं फैसले के बाद अदालत ने कहा कि घटना में विस्फोट हुआ, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन अभियोजन पक्ष यह सिद्ध नहीं कर पाया कि धमाका किस वाहन या किस माध्यम से हुआ और उसमें आरोपी व्यक्तियों की प्रत्यक्ष भूमिका क्या थी। कोर्ट ने माना कि साक्ष्य कमजोर, विरोधाभासी और संदेहपूर्ण थे।
केस ने जीवन को बर्बाद किया: प्रज्ञा ठाकुर
फैसले के बाद पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह केस उनके जीवन को "बर्बाद" कर गया। उन्होंने कहा कि एक साध्वी होते हुए उन्हें झूठे आरोपों में फंसाया गया और उनके साथ शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक बड़ी साजिश थी भगवा को बदनाम करने की, लेकिन आज "भगवा की जीत" हुई है। उन्होंने कहा, “मैं ज़िंदा हूं क्योंकि मैं सन्यासी हूं, और ईश्वर अब उन लोगों को सज़ा देगा जिन्होंने इस देश को और भगवा को कलंकित किया।”
सत्य की जीत: नरेश म्हस्के
वहीं शिवसेना सांसद नरेश म्हस्के ने भी फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह सत्य की जीत है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह पूरा मामला कांग्रेस सरकार द्वारा "हिंदू आतंक" की छवि गढ़ने के लिए तैयार किया गया था, जो अब अदालत में झूठा साबित हो गया है।