नकदी बरामदगी मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे जस्टिस यशवंत वर्मा,
याचिका में छिपाई पहचान
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
दिल्ली स्थित सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामदगी के बाद विवादों में आए जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी पहचान छिपाकर याचिका दायर की है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस न्यायाधीश ने शीर्ष अदालत की उस तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी है, जिसने उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी।
बर्खास्तगी की हुई थी सिफारिश
गौरतलब है कि नकदी बरामदगी की घटना के बाद उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट से स्थानांतरित कर इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजा गया था। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस मामले की जांच के लिए तीन जजों की एक समिति गठित की थी। समिति की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी।
सुप्रीम कोर्ट में अज्ञात नाम से याचिका
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर दाखिल दस्तावेजों में जस्टिस वर्मा को "XXX" नाम से संबोधित किया गया है। यह याचिका सोमवार को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
"मैं दिल्ली में नहीं था, न ही मेरी बात सुनी गई"
वहीं अपनी याचिका में जस्टिस वर्मा ने कहा है कि जब उनके दिल्ली वाले घर में नकदी बरामद हुई, उस समय वे वहां मौजूद नहीं थे। उन्होंने आरोप लगाया कि जांच समिति ने न तो उन्हें कोई नोटिस भेजा, न ही आरोपों पर सफाई का मौका दिया।
"न्यायपालिका संसद का अधिकार नहीं ले सकती"
जस्टिस वर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बर्खास्तगी की सिफारिश करना संविधान की "सेपरेशन ऑफ पावर्स" (शक्तियों के पृथक्करण) की अवधारणा का उल्लंघन है। “यह संसद के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है। जजों की बर्खास्तगी का निर्णय लेना केवल संसद का कार्य है, न कि न्यायपालिका का,” उन्होंने कहा।
"बिना शिकायत, बिना सुनवाई, सिर्फ मीडिया ट्रायल"
उन्होंने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ कोई औपचारिक शिकायत नहीं थी, फिर भी जांच प्रक्रिया शुरू की गई। “समिति ने जांच प्रक्रिया की जानकारी नहीं दी, न ही मुझे सबूतों पर प्रतिक्रिया देने का मौका मिला। गवाहों के बयान मेरे बिना दर्ज हुए, और मुझे वीडियो की बजाय उनके 'पैराफ्रेज़' थमा दिए गए। मेरी तरफ से मांगे गए CCTV फुटेज तक नहीं जुटाए गए।” उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया में जारी प्रेस रिलीज़ ने उनकी छवि को बर्बाद कर दिया और यह एक तरह का मीडिया ट्रायल था, जिससे उनकी व्यक्तिगत और पेशेवर साख को अपूरणीय क्षति पहुँची।
"इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की दी गई थी धमकी"
जस्टिस वर्मा ने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें बहुत कम समय में या तो इस्तीफा देने या फिर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने को कहा गया। ऐसा न करने पर उन्हें "हटाए जाने की कार्रवाई" की चेतावनी दी गई।
पहचान गोपनीय रखने की अपील
वहीं सुप्रीम कोर्ट रिकॉर्ड्स के अनुसार, जज के वकील ने अदालत से अनुरोध किया है कि उनकी याचिका को बिना नाम सार्वजनिक किए दाखिल करने की अनुमति दी जाए।