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जानें क्यों छह साल से थाने में बंद है जिम कॉर्बेट की ये ऐतिहासिक बंदूक, म्यूजियम अधूरा और पर्यटक निराश

1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा

उत्तराखंड के नैनीताल जिले के कालाढूंगी में स्थित जिम कॉर्बेट म्यूजियम न केवल साहस और वन्यजीव संरक्षण की कहानियों का गवाह है, बल्कि यह उन विरासतों को भी सहेज कर रखता है, जिनसे महान शिकारी से पर्यावरण रक्षक बने जिम कॉर्बेट का जीवन जुड़ा रहा। मगर पिछले छह वर्षों से म्यूजियम की एक ऐतिहासिक धरोहर – जिम कॉर्बेट की बंदूक वहां से नदारद है, जो पर्यटकों के लिए लंबे समय से आकर्षण का केंद्र रही है।

थाने में धूल फांक रही है ऐतिहासिक बंदूक
यह बंदूक पहले म्यूजियम में सजीव इतिहास की तरह रखी गई थी, जिसे कॉर्बेट ने अपने साथी शेर सिंह को गांववासियों की सुरक्षा के लिए दी थी। यह न केवल एक हथियार थी, बल्कि कॉर्बेट के विचारों और उनके संघर्षों की जीवित निशानी भी थी। लेकिन पिछले छह वर्षों से यह बंदूक कालाढूंगी के थाने में जमा है और इसका कारण है लाइसेंस ट्रांसफर की अटकी प्रक्रिया।

एक लाइसेंस ट्रांसफर में छह साल की देरी क्यों?
बंदूक के आखिरी अधिकृत लाइसेंसधारी त्रिलोक सिंह नेगी के निधन के बाद, इसका लाइसेंस उनके पुत्र मोहित नेगी के नाम ट्रांसफर किया जाना था। लेकिन यह प्रक्रिया नैनीताल कलक्ट्रेट के सशस्त्र विभाग की फाइलों में उलझ कर रह गई है। छह साल गुजर चुके हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

म्यूजियम अधूरा, पर्यटक निराश
नेचर गाइड इंद्र बिष्ट के अनुसार, विदेशी पर्यटक विशेष रूप से इस ऐतिहासिक बंदूक को देखने के लिए आते थे। जिम कॉर्बेट की किताबों में वर्णित यह हथियार उनके शिकार और संरक्षण काल का हिस्सा रहा है। अब इसके न होने से म्यूजियम अधूरा और पर्यटक निराश होकर लौट जाते हैं।

धरोहर भी लुप्त, पर्यटन भी प्रभावित
बंदूक सिर्फ धातु का टुकड़ा नहीं, बल्कि वह एक युग का प्रतीक है। शेर सिंह के बाद यह त्रिलोक सिंह और फिर उनके पुत्र को मिलनी थी, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही और औपचारिकताओं ने इसे थाने में कैद कर दिया। इससे स्थानीय पर्यटन को भी नुकसान हो रहा है।

जिम कॉर्बेट: शिकारी से संरक्षक तक का सफर
25 जुलाई 1875 को नैनीताल में जन्मे जिम कॉर्बेट ने एक समय पर आदमखोर बाघों और तेंदुओं का शिकार किया, लेकिन बाद में वे वन्यजीवों के संरक्षण के सबसे बड़े समर्थक बने। उन्होंने 1936 में भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे बाद में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क नाम दिया गया।

प्रशासन से उम्मीदें और मांगें
स्थानीय लोग, नेचर गाइड और इतिहास प्रेमी एक ही सवाल उठा रहे हैं — क्या एक लाइसेंस ट्रांसफर में छह साल लगने चाहिए? यह बंदूक म्यूजियम में होनी चाहिए, न कि थाने में धूल फांकते हुए। यह न केवल जिम कॉर्बेट की स्मृति के साथ अन्याय है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर और पर्यटन की संभावनाओं को भी नुकसान पहुंचाता है।

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