बांग्लादेश से सटे जिले में काटे गए 7.6 लाख वोटर्स के नाम,
विशेष समुदाय को टारगेट करने का आरोप
1 days ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
बिहार के सीमांचल क्षेत्र में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा चुनावी बवाल खड़ा हो गया है। अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिलों में मतदाता सूची से 7.6 लाख से अधिक लोगों के नाम हटाए जाने के बाद सियासी गलियारों में हलचल मच गई है। यह मामला तब और पेचीदा हो गया जब यह पता चला कि जिन चार जिलों में नाम काटे गए हैं, वे सभी मुस्लिम बहुल इलाके हैं और नेपाल व बांग्लादेश की सीमा से सटे हुए हैं।
कहां कितने नाम कटे ?
चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक, अररिया में 1,58,072, किशनगंज में 1,45,668, पूर्णिया में 2,73,920 और कटिहार में 1,84,254 मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं। यानी चारों जिलों को मिलाकर 7,61,914 लोगों को मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया है। यह संख्या चुनावी दृष्टि से बेहद अहम है क्योंकि सीमांचल क्षेत्र में 24 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें हर चुनाव में एनडीए और विपक्षी INDIA गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर होती रही है।
चुनाव आयोग की सफाई
चुनाव आयोग ने इन नामों को हटाने को पूरी तरह नियमबद्ध प्रक्रिया बताया है। आयोग का कहना है कि मतदाता सूची की सफाई के तहत मृत व्यक्तियों, डुप्लिकेट नामों, और जो लोग अन्य शहरों या राज्यों में स्थानांतरित हो चुके हैं, उनके नाम हटाए गए हैं। लेकिन विपक्षी दल इस सफाई से संतुष्ट नहीं हैं। उनका आरोप है कि यह कार्रवाई एक सोची-समझी रणनीति के तहत की गई है ताकि सीमांचल में मौजूद एक खास वर्ग के लोगों को मतदान से दूर किया जा सके। कुछ नेताओं ने इसे "जनसांख्यिकीय परिवर्तन की कोशिश" तक करार दे दिया है।
सीमांचल: हमेशा से सियासी सेंटर
सीमांचल न सिर्फ भूगोलिक रूप से संवेदनशील है बल्कि चुनावी गणित में भी इसकी अहम भूमिका रही है। 2020 के विधानसभा चुनावों में इस क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने पांच सीटें जीतकर विपक्षी महागठबंधन को झटका दिया था। इस बार फिर यहां ध्रुवीकरण की आशंका जताई जा रही है। इस संदर्भ में इतने बड़े पैमाने पर नामों का हटाया जाना सिर्फ प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि राजनीतिक मायने भी रखता है। यही वजह है कि इस मसले ने प्रदेश और केंद्र दोनों स्तरों की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है।
कैसे हुई यह प्रक्रिया ?
इस बार स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के तहत मतदाता सूची का पुनरीक्षण हुआ। इसके पहले चरण में मतदाताओं को गणना प्रपत्र (Enumeration Forms) दिए गए थे। उन्हें यह फॉर्म बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) या राजनीतिक दलों के बीएलए (बूथ लेवल एजेंट) के माध्यम से प्राप्त हुआ था। मतदाताओं से अपेक्षा की गई थी कि वे फॉर्म को भरकर, हस्ताक्षर करके और पहचान के दस्तावेज संलग्न कर वापस करें। जिन मतदाताओं ने यह प्रक्रिया पूरी नहीं की, उनका नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटा दिया गया।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं
विपक्ष का आरोप: "यह नामों की सफाई नहीं, बल्कि एक विशेष समुदाय को लक्ष्य बनाने की साजिश है। यह लोकतंत्र के लिए खतरा है।"
सत्तारूढ़ एनडीए का जवाब: "यह कदम पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव की दिशा में जरूरी है। मृत और डुप्लिकेट मतदाताओं को हटाना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है।"