सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: राज्यपालों को समय पर करना होगा फैसला,
विधेयकों पर नहीं चलेगी टालमटोल
9 days ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यपालों से अपेक्षा की जाती है कि वे 'उचित समय' के भीतर विधेयकों पर फैसला लें, भले ही संविधान के अनुच्छेद 200 में ‘जितनी शीघ्र संभव हो’ जैसी शब्दावली का उल्लेख न हो। कोर्ट ने साफ किया कि विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर समय पर निर्णय लेना राज्यपालों की संवैधानिक जिम्मेदारी है। चीफ जस्टिस बी. आर. गवई की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की, जब विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय करने से जुड़े मामले की सुनवाई हो रही थी।
अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की शक्तियां
संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल की शक्तियों को नियंत्रित करता है। इसके तहत राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं जिनमें विधेयक पर सहमति देना, सहमति रोकना, विधेयक को पुनर्विचार हेतु विधानसभा में वापस भेजना और विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आरक्षित रखना शामिल हैं। पंजाब राज्य की ओर से एडवोकेट अरविंद दतार ने दलील दी कि संविधान निर्माताओं ने जानबूझकर अनुच्छेद 200 में “जितनी शीघ्र संभव हो” शब्द शामिल किए थे, ताकि राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चित काल तक लटकाकर न रखें। उन्होंने कोर्ट से तीन माह की निर्धारित समय-सीमा तय करने की मांग की।
'उचित समय में काम करना होगा' – सुप्रीम कोर्ट
संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि भले ही अनुच्छेद 200 में ‘जितनी शीघ्र संभव हो’ शब्दावली न होती, तब भी राज्यपालों से अपेक्षा की जाती है कि वे उचित समय में फैसला करें। बेंच ने कहा, “राज्यपाल की भूमिका सिर्फ औपचारिक है। उन्हें चुनी हुई सरकार और मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करना होता है। टालमटोल करने से लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित होती है।”
कर्नाटक सरकार की दलील
सुनवाई के दौरान कांग्रेस शासित कर्नाटक सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रह्मण्यम ने दलील दी कि राज्यपाल और राष्ट्रपति संवैधानिक रूप से औपचारिक प्रमुख (Titular Heads) हैं। उन्हें केंद्र और राज्यों में मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करना होता है। अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपाल को आपराधिक कार्यवाही से इम्युनिटी (Immunity) प्रदान करता है। राज्यपाल की संतुष्टि का अर्थ दरअसल मंत्रिपरिषद की संतुष्टि है। सुब्रह्मण्यम ने सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि चुनी हुई सरकार के समानांतर कोई समानांतर प्रशासन नहीं चल सकता।
राज्यपाल की शक्तियों पर एक और ऐतिहासिक सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का सीधा असर कई राज्यों में चल रहे विवादों पर पड़ सकता है, जहां राज्यपाल विधेयकों को महीनों तक लंबित रखते हैं। कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में पहले भी सरकारें राज्यपालों की देरी पर सवाल उठाती रही हैं। अब इस मामले में कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी ने भविष्य के लिए संवैधानिक मार्गदर्शन तय कर दिया है।