अब फ्री नहीं होंगे UPI ट्रांजैक्शन !
RBI गवर्नर ने दिए बड़े संकेत
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
डिजिटल इंडिया की रीढ़ बन चुकी यूपीआई सेवा को लेकर अब बड़ा संकेत सामने आया है। भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर संजय मल्होत्रा ने हाल ही में स्पष्ट किया कि पूरी तरह से मुफ्त डिजिटल ट्रांजैक्शन का दौर अब ज्यादा दिन टिकने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में यूपीआई पर कोई शुल्क नहीं लिया जा रहा है क्योंकि सरकार बैंकों और अन्य हितधारकों को सब्सिडी देती है। मगर यह मॉडल स्थायी नहीं है। इस व्यवस्था को आर्थिक रूप से टिकाऊ बनाने की आवश्यकता है और इसके लिए भविष्य में लेनदेन पर शुल्क लगाया जा सकता है।
किसी न किसी तो उठाना होगा खर्च
संजय मल्होत्रा ने यह बात फाइनेंशियल एक्सप्रेस के एक कार्यक्रम में कही, जहाँ उन्होंने यह भी जोड़ा कि “किसी न किसी को तो खर्च उठाना ही होगा।” यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में डिजिटल भुगतान, विशेष रूप से यूपीआई, अब जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। हर दिन 60 करोड़ से अधिक यूपीआई ट्रांजैक्शन हो रहे हैं और बीते दो वर्षों में इनकी संख्या लगभग दोगुनी हो चुकी है। इतनी बड़ी और तेज़ी से बढ़ती प्रणाली को लंबे समय तक मुफ्त बनाए रखना स्वाभाविक रूप से कठिन है।
सब्सिडी अस्थायी व्यवस्था
डिप्टी गवर्नर ने साफ कहा कि भारत डिजिटल भुगतान को सरल, सुरक्षित और सर्वसुलभ बनाकर रखना चाहता है, मगर यह तभी संभव है जब सिस्टम आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो। फिलहाल सरकार जिस सब्सिडी के सहारे इसे चला रही है, वह सिर्फ एक अस्थायी व्यवस्था है। उन्होंने यह भी बताया कि एमडीआर यानी मर्चेंट डिस्काउंट रेट की नीति को जारी रखना है या नहीं, यह सरकार तय करेगी। यह वह शुल्क होता है जो व्यापारी बैंक को देते हैं जब ग्राहक कार्ड या यूपीआई से भुगतान करता है। वर्तमान में यह चार्ज कई मामलों में शून्य है या सरकार द्वारा वहन किया जाता है।
बैंक विलय के परिणाम अच्छे
गवर्नर ने बैंकों के विलय पर भी बात की और कहा कि पूर्व में जो विलय हुए हैं, उनके अच्छे परिणाम सामने आए हैं। लेकिन आगे ऐसा कोई भी कदम तभी उठाया जाएगा जब उससे वास्तविक आर्थिक लाभ सुनिश्चित हो। इन बयानों का सीधा अर्थ यह निकलता है कि भारतीय रिजर्व बैंक अब यूपीआई को पूरी तरह सब्सिडी आधारित सेवा नहीं रहने देना चाहता। एक आत्मनिर्भर पेमेंट सिस्टम के निर्माण की दिशा में यह पहली सार्वजनिक स्वीकृति है कि आगे चलकर लेनदेन शुल्क लगाया जा सकता है। हालांकि यह शुल्क मामूली होगा, लेकिन इससे "पूरी तरह मुफ्त" डिजिटल भुगतान के युग का औपचारिक अंत हो सकता है।