लिव-इन रिलेशनशिप...क्या फायदा, क्या नुकसान,
जानें पूरा गुणा गणित, क्यों डिप्रेशन में जा रहे युवा
6 days ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
आधुनिकता और समय के बदलते रंगों ने रिश्तों की परिभाषाओं को भी नया रूप दे दिया है। वह रिश्ता जिसे पहले भारतीय समाज अकल्पनीय समझता था। बिना शादी के साथ रहना, अब खासकर शहरों और युवा वर्ग में धीरे-धीरे सामान्य होता दिख रहा है। केवल साथ रहने का विकल्प नहीं, लिव-इन आज उन रिश्तों के लिए एक तरह का परीक्षा-मंच बन गया है, जहाँ युवा शादी जैसा बड़ा फैसला लेने से पहले एक-दूसरे को करीब से समझने की कोशिश कर रहे हैं। पर सवाल यही है: क्या पारंपरिक ढाँचे वाले भारत में यह सचमुच सही और आसान रास्ता है? इस लेख में हम उसी दिए गए तर्कों और जानकारियों के आधार पर कहानी के दो पहलुओं, आकर्षण और चुनौतियों पर संपूर्ण नज़रिया पेश कर रहे हैं....
क्यों बढ़ रहा है लिव-इन का चलन
पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव, बदलती सोच और युवा-पीढ़ी की आत्मनिर्भरता ने रिश्तों को उनकी परंपरागत शर्तों से आज़ाद किया है। आज के नवयुवा अपने जीवन को अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं, फैसलों में अधिक-से-अधिक नियंत्रण, करियर की प्राथमिकता और आर्थिक अनिश्चितता उन्हें पारंपरिक विवाह के तुरंत बाद परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं होने देती। ऐसे में लिव-इन एक व्यावहारिक विकल्प बनकर आता है: घर का किराया और बिल मिलकर बांट लेना आर्थिक बोझ घटाता है, और शादी के दबाव के बिना एक-दूसरे की आदतें, स्वभाव व रोज़मर्रा की संगत को समझने का मौका मिलता है।
लिव-इन के साफ फायदे
लिव-इन की मजबूरियों में कई सुव्यवस्थित फायदे भी हैं। सहयोगी आर्थिक व्यवस्था, बिना कानूनी जटिलताओं के रिश्ते में मजबूती महसूस करना और साथी के साथ निकटता बनाते हुए जीवन-साझेदारी की संभावनाओं का परीक्षण करना प्रमुख हैं। शोध भी संकेत देता है कि अकेलेपन की तुलना में किसी के साथ रहने से मानसिक स्वास्थ्य के मामले में लाभ हो सकते हैं, एक बड़े डेटा अध्ययन में पाया गया कि अकेले रहने वाले लोगों में अवसाद का खतरा काफी अधिक होता है, जबकि शादीशुदा और लिव-इन कपल्स में यह जोखिम कम रहता है। इसके अलावा, रिश्ते के टूटने की स्थिति में लिव-इन में अलग होना कई बार तुलनात्मक रूप से आसान होता है — लंबी कानूनी प्रक्रिया और सामाजिक बदनामी की दिक्कतें कम होती हैं।
चुनौतियाँ- जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
जहाँ फायदे हैं, वहीं चुनौतियाँ भी कम गंभीर नहीं। सबसे बड़ी समस्या कमिटमेंट की कमी है: शादी में जोड़े व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, समाज और परिवार से भी बँधते हैं, जीवनभर साथ निभाने का वादा रिश्ते में एक स्थिरता लाता है। लिव-इन में यह भरोसा अधूरा रह सकता है; कई बार एक साथी शादी की दिशा चाहता है और दूसरा सिर्फ़ साथ रहने तक सीमित रहना चाहता है, इस असमानता से मानसिक तनाव और दरारें पैदा हो सकती हैं। इसके अलावा, भारतीय समाज की स्वीकार्यता अभी भी सीमित है, छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में लिव-इन को तिरस्कृत करना आम है और परिवार या पड़ोसियों की आलोचना भावनात्मक दबाव बनकर लौट सकती है। भावनात्मक स्तर पर ब्रेक-अप का असर भी उतना ही गहरा होता है जितना किसी वैवाहिक टूटन का होता है।
कानूनी स्थिति- सुरक्षा है, पर सीमाएँ भी हैं
कानूनी तौर पर भारत ने लिव-इन को पूरी तरह नकारा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि लंबे समय तक साथ रहने वाले रिश्ते को शादी के समकक्ष माना जा सकता है, और घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत महिलाएँ उत्पीड़न की स्थिति में संरक्षण पा सकती हैं। लिव-इन से जन्मे बच्चों को भी पिता की संपत्ति पर हक़ मिलना स्वीकार किया गया है, और कई मामलों में महिला को भरण-पोषण के अधिकार दिए गए हैं। फिर भी संपत्ति और उत्तराधिकार के मामलों में सीमाएँ बरकरार हैं: जब तक संपत्ति के मालिक ने वसीयत न बनाई हो, पार्टनर को स्वतः हक़ नहीं मिलता। यानी आर्थिक सुरक्षा के मामले में कई काली-सफ़ेद जटिलताएँ रह जाती हैं।
विशेषज्ञों की चेतावनी और सुझाव
मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि लिव-इन एक परखने वाला मंच हो सकता है, बशर्ते दोनों पार्टनर परिपक्व हों और रिश्ते के प्रति साफ़ नीयत रखें। मुंबई की संस्थान Aavishkar के डॉ. मालिनी शाह और डॉ. निर्मला राव ने स्पष्ट किया है कि लिव-इन में प्रतिबद्धता कम होने की वजह से पार्टनर बदलने की संभावना बढ़ती है, जिससे भावनात्मक असुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं। इसी तरह, अंतरराष्ट्रीय शोधों के आंकड़े यह भी बताते हैं कि साथ रहने से अकेलेपन के नकारात्मक मानसिक प्रभाव कम हो सकते हैं, पर यह लाभ तभी मिलता है जब रिश्ता स्थिर और स्वस्थ हो।
सही निर्णय के लिए क्या चाहिए
लिव-इन तभी सफल हो सकता है जब दोनों साथी बराबर की सोच के साथ, ईमानदारी और परिपक्वता दिखाते हुए इसमें आयें। भावनात्मक और आर्थिक आत्मनिर्भरता जरूरी है, ताकि किसी एक पर असमान बोझ न पड़े। प्राइवेसी और सीमाओं का सम्मान, भविष्य की योजनाओं पर साफ़ बातचीत तथा कानूनी अधिकारों की समझ- ये सभी उस आधार को मजबूत करते हैं जिसपर यह विकल्प टिक सकता है। वरना, केवल सुविधाजनक लगने के कारण इस मार्ग पर चलना रिश्ते को अनिश्चितता की ओर धकेल सकता है।