गर्ल्स लेट नाइट बाहर जाने से पहले सोच लो, वरना तुम्हारे साथ हो सकता है…
पुलिस पोस्टर ने दी ऐसी चेतावनी कि उड़ गए होश
1 days ago
Written By: Ashwani Tiwari
Ahmedabad News: गुजरात के अहमदाबाद शहर में महिला सुरक्षा को लेकर लगाए गए पोस्टरों ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। इन पोस्टरों में महिलाओं को देर रात पार्टी में न जाने की सलाह इस तरह दी गई थी, जिससे यह संदेश गया कि यदि महिलाएं ऐसा करती हैं, तो वह खुद ही रेप या गैंगरेप को न्योता दे रही हैं। जैसे ही ये पोस्टर सार्वजनिक जगहों पर लगे, सामाजिक संगठनों, स्थानीय नागरिकों और सोशल मीडिया यूजर्स ने कड़ी आपत्ति जताई। विवाद बढ़ने पर पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए इन पोस्टरों को हटवा दिया और सफाई दी कि यह संदेश न केवल अस्वीकार्य है, बल्कि पुलिस को इसकी जानकारी भी नहीं थी।
विवादित भाषा और महिलाओं को दी गई नसीहतों पर विरोध
पोस्टरों में लिखा गया था लेट-नाइट पार्टी में जाना रेप या गैंगरेप को न्योता दे सकता है और अंधेरे और सुनसान इलाकों में दोस्तों के साथ न जाएं, आपके साथ रेप या गैंगरेप हो सकता है। इन पंक्तियों को लेकर विरोधियों ने कहा कि यह सीधे तौर पर महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहराने वाली मानसिकता को दर्शाता है। विरोध के बाद ट्रैफिक वेस्ट की डीसीपी नीता देसाई और एसीपी शैलेश मोदी ने सफाई दी कि ये पोस्टर सतर्कता नाम के एक एनजीओ द्वारा प्रस्तावित थे और पुलिस को इनकी भाषा की जानकारी पहले से नहीं थी।
पुलिस की सफाई और एनजीओ की भूमिका
पुलिस ने खुद को इससे अलग करते हुए कहा कि उन्होंने ऐसे शब्दों को इस्तेमाल करने की इजाजत कभी नहीं दी थी। ट्रैफिक एसीपी एनएन चौधरी ने साफ किया कि जैसे ही उन्हें विवाद की जानकारी मिली, पोस्टर हटवा दिए गए। इस मामले में पुलिस प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं, क्योंकि महिला सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दे पर बिना सामग्री देखे अनुमति देना लापरवाही मानी जा रही है।
स्थानीय लोगों और महिलाओं की तीखी प्रतिक्रिया
घाटलोडिया की निवासी भूमि पटेल ने कहा इन संदेशों से लगता है कि महिलाओं की गलती से अपराध होता है, जबकि असली जिम्मेदार सिस्टम है। वहीं, बोडकदेव की एक फिटनेस ट्रेनर ने इन पोस्टरों को मोरल पुलिसिंग बताते हुए कहा कि यह महिला सुरक्षा का मजाक है। नेहरू नगर की एक महिला ने कहा कि ये पोस्टर उस सोच को दर्शाते हैं जो पीड़िता को दोष देती है और असली जिम्मेदार संस्थाओं को बचा लेती है।
सुरक्षा से ज़्यादा नसीहत पर ज़ोर
यह विवाद केवल कुछ पोस्टरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने महिला सुरक्षा के नाम पर चल रहे अभियानों की सोच और उनके तरीकों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटनाक्रम से यह साफ हो गया है कि महिलाओं को सुरक्षा देने के बजाय उन्हें सीख देना आज भी प्राथमिकता मानी जा रही है। आम लोगों की मांग है कि महिलाओं को दोषी ठहराने के बजाय व्यवस्था को जवाबदेह बनाया जाए।