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राहुल गांधी के लिए कांग्रेस की महत्वाकांक्षा से परेशान हुए अखिलेश यादव, क्या होगा गठबंधन का भविष्य?

5 days ago
Written By: Ujjwal Singh

दिल्ली। उत्तर प्रदेश की राजनीति में विपक्षी एकजुटता का सवाल एक बार फिर संकट में है। बिहार चुनाव के नतीजों के बाद से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के रिश्तों में मतभेदों के संकेत लगातार सामने आ रहे हैं। खासकर मुस्लिम वोट बैंक को लेकर दोनों दलों के बीच खींचतान बढ़ गई है। राजनीतिक गलियारों में आशंका जताई जा रही कि मुस्लिम मतों पर नियंत्रण को लेकर सपा कांग्रेस का गठबंधन आगे भी बना रहेगा या फिर टूट जाएगा। 

कांग्रेस को लेकर कशमकश में अखिलेश यादव 
संकेत बताते हैं कि अखिलेश यादव गहरी दुविधा में हैं, कांग्रेस के साथ रहें या अलग हो जाएं। यह फैसला वे अब तक नहीं ले पा रहे। सपा के भीतर एक मजबूत धड़ा खुले तौर पर कांग्रेस से गठबंधन तोड़ने के पक्ष में है। उनका तर्क है कि गठबंधन ने सपा के लिए मौजूदा समय में गले की हड्डी वाला रूप ले लिया है। यानी कांग्रेस के साथ गठबंधन से बड़ा फायदा सिर्फ कांग्रेस को है। सपा को उससे कुछ भी हासिल नहीं हो रहा। 

मुस्लिम मतों पर दोनों पार्टियों का दांव
सपा को सबसे बड़ा डर यह है कि अगर गठबंधन टूटता है तो मुस्लिम वोट बंट सकते हैं। कांग्रेस भी इसी कार्ड को खेल रही है। पार्टी इमरान मसूद जैसे मुस्लिम चेहरों को आगे रखकर मुस्लिम मुद्दों पर सपा की तुलना में इस वक्त ज्यादा आक्रामक तरीके से राजनीति कर रही है। कांग्रेस की यह रणनीति असल में सपा पर दबाव बनाने को लेकर है। यहां तक कि आजम खान के जेल जाने के मुद्दे पर भी कांग्रेस, सपा से कहीं ज्यादा मुखर नजर आई है, जिसे सपा के भीतर नाराजगी के रूप में देखा जा रहा।

मायावती और ओवैसी की नजदीकियां दूसरी बड़ी चिंता
असल में उत्तर प्रदेश में सपा की दिक्कत सिर्फ कांग्रेस तक सीमित नहीं है। बल्कि यह भी आशंका है कि मायावती और ओवैसी की बढ़ती नजदीकियां मुस्लिम वोटों के समीकरण को और बिगाड़ सकती हैं। यूपी में दोनों दलों के बीच खिचड़ी पकने की चर्चाएं हैं। हालांकि स्पष्ट रूप से अबतक ऐसा कुछ भी नहीं दिखा है। सपा को भारी डर यह भी है कि दलित-मुस्लिम बहुल सीटों पर बसपा और AIMIM की एंट्री से सीधा नुकसान हो सकता है।

मायावती पर संयमित रणनीति
अभी हाल ही में रिपोर्ट्स आईं कि अखिलेश यादव ने पार्टी नेताओं को अंदरूनी निर्देश दिए हैं कि सपा नेता, मायावती पर आक्रामक टिप्पणी से बचें। यह रणनीति इसलिए अपनाई गई है क्योंकि सपा नहीं चाहती कि दलित और मुस्लिम मतदाताओं को प्रभावित करने वाली किसी भी बयानबाजी से बसपा को फायदा मिले। वहीं दूसरी ओर अखिलेश यादव अब तक आजम खान, मायावती की केमिस्ट्री में भी उलझे नजर आते हैं, जिसे वे अब तक साध नहीं पाए हैं।

कांग्रेस की महत्वाकांक्षा और यूपी की जमीनी हकीकत
यूपी में कांग्रेस की महत्वाकांक्षा लगातार बढ़ रही है। कांग्रेस ने सपा की बैशाखी पर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ा छह सीटें जीतने में कामयाब रहे। गठबंधन में कांग्रेस को 17 लोकसभा सीटें मिली थीं। अब इसी गणित पर कांग्रेस यूपी विधानसभा चुनाव में सपा से 100 से ज्यादा विधानसभा सीटें चाहती है। सपा इसे अव्यावहारिक मानती है और बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन और राहुल गांधी का विपक्षी चेहरा बन जाने के बाद से चौकन्ना है। बिहार के नतीजों के बाद कांग्रेस को लेकर सपा के घटते भरोसे ने गठबंधन की जमीन और कमजोर कर दी है। विपक्षी एकजुटता अब दांव पर लग चुकी है।

शीतकालीन सत्र: गठबंधन के भविष्य का फैसला
संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस को सपा के साथ की जरूरत होगी। कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इसी सत्र में यह भी तय हो सकता है कि विपक्षी खेमे में सपा-कांग्रेस साथ रहेंगे या रास्ते अलग करेंगे जैसे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ किसी भी गठबंधन में नहीं जाने का फैसला किया। कुल मिलाकर देखा जाए तो यूपी की राजनीति इस समय ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां मुस्लिम मत, दलित मत, बसपा की मौजूदगी, AIMIM की सक्रियता और राहुल गांधी के लिए कांग्रेस की महत्वाकांक्षा, इन सबने मिलकर अखिलेश यादव के लिए राजनीतिक समीकरण बेहद जटिल बना दिए हैं। अखिलेश कैसे पार निकलेंगे यह भविष्य की बात है।

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