वर्ल्ड कप फाइनल में छाईं अमनजोत कौर, लेकिन घर पर दादी जिंदगी और मौत से लड़ रहीं थीं…
परिवार ने छिपाई उनसे सच्चाई
1 months ago Written By: Ashwani Tiwari
भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ऑलराउंडर अमनजोत कौर ने वर्ल्ड कप फाइनल में अपनी शानदार फील्डिंग से सभी का दिल जीत लिया। उन्होंने बल्ले और गेंद से नहीं, बल्कि अपने डायरेक्ट थ्रो और बेहतरीन कैच से मैच का रुख भारत की ओर मोड़ दिया। पहले उन्होंने साउथ अफ्रीका की ओपनर तजमिन ब्रिट्स को डायरेक्ट थ्रो पर रन आउट किया, और फिर 42वें ओवर में साउथ अफ्रीका की कप्तान लॉरा वुलफार्ट का शानदार कैच लपका। लेकिन इस जीत के जश्न के बीच, उनके घर में तनाव और चिंता का माहौल था। उसी समय उनकी दादी को दिल का दौरा पड़ा था, जिसकी खबर परिवार ने उनसे छिपा ली थी ताकि उनकी बेटी का ध्यान मैच से न भटके।
परिवार ने छिपाई दादी की बीमारी अमनजोत के पिता भूपिंदर सिंह पेशे से बढ़ई और ठेकेदार हैं। उन्होंने बताया कि उनकी 75 साल की मां भगवंती को मैच से कुछ दिन पहले दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। भूपिंदर ने कहा कि उन्होंने अमनजोत को यह बात नहीं बताई, क्योंकि वह वर्ल्ड कप खेल रही थी और वे नहीं चाहते थे कि वह परेशान हो। उन्होंने कहा, मेरी मां भगवंती, अमनजोत की ताकत रही हैं। जब वह पड़ोस के लड़कों के साथ क्रिकेट खेलना शुरू करती थी, तो दादी पार्क में कुर्सी डालकर बैठ जाती थीं और उसका हौसला बढ़ाती थीं। वे यह भी देखती थीं कि कोई उसे परेशान न करे। अब जब वह अस्पताल में हैं, वर्ल्ड कप की जीत हमारे परिवार के लिए एक बड़ी राहत है।
स्केटर से बनी स्टार क्रिकेटर अमनजोत कौर की खेल यात्रा भी बेहद प्रेरणादायक रही है। शुरुआत में उन्होंने स्केटिंग और हॉकी में हाथ आजमाया था, लेकिन धीरे-धीरे क्रिकेट के प्रति उनका झुकाव बढ़ता गया। वे मोहाली में अपने इलाके के लड़कों के साथ क्रिकेट खेला करती थीं। साल 2016 में एक पड़ोसी ने पिता भूपिंदर सिंह को सुझाव दिया कि उनकी बेटी में प्रतिभा है, उसे प्रोफेशनल ट्रेनिंग दिलाई जाए। इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ में क्रिकेट एकेडमी की तलाश की। उनकी तलाश खत्म हुई सेक्टर 32 के सरकारी स्कूल की एकेडमी पर, जहां कोच नागेश गुप्ता ने अमनजोत को अपने संरक्षण में लिया और उन्हें एक बेहतर खिलाड़ी बनाया।
वर्ल्ड कप की जीत बनी परिवार के लिए मरहम आज अमनजोत कौर की फील्डिंग की चर्चा पूरे देश में है। लेकिन उनके परिवार के लिए यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि मुश्किल समय में मिली खुशी की किरण है। दादी भगवंती के इलाज के बीच यह जीत पूरे परिवार के लिए उम्मीद और गर्व का पल बन गई है।