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आतंकियों ने बातचीत के लिए इस्तेमाल किया Session App, जानिए क्यों छोड़ा WhatsApp और Telegram

1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari

दिल्ली के लाल किले के पास हुए कार ब्लास्ट की जांच में रोजाना नए खुलासे हो रहे हैं। सरकार ने इस हमले को आतंकी घटना मान लिया है और केस की जांच कई एजेंसियां मिलकर कर रही हैं। अब एक अहम जानकारी सामने आई है कि इस हमले से जुड़े आतंकी आपस में बात करने के लिए Session App का इस्तेमाल कर रहे थे। सवाल ये उठता है कि जब मार्केट में WhatsApp और Telegram जैसे पॉपुलर ऐप मौजूद हैं, तो फिर उन्होंने Session को क्यों चुना?

क्या है Session App?
Session ऐप एक Swiss बेस्ड एप्लिकेशन है जिसे Session Technology Foundation ने डेवलप किया है। कंपनी के प्रेसिडेंट का नाम Alexander Linton बताया गया है। ऐप साल 2020 से मार्केट में मौजूद है और गूगल प्ले स्टोर व iOS दोनों पर डाउनलोड के लिए उपलब्ध है। इसे अब तक 12 लाख से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है और इसकी रेटिंग 4.5 स्टार है।

बिना मोबाइल नंबर के लॉगिन
Session ऐप की सबसे खास बात यह है कि इसमें मोबाइल नंबर या ईमेल की जरूरत नहीं पड़ती। हर यूजर के लिए एक यूनिक यूजर नेम बनाया जाता है जिसके जरिए बातचीत की जाती है। अगर किसी को एक नए डिवाइस में लॉगिन करना है तो उसे सिर्फ एक रिकवरी पासवर्ड चाहिए होता है। अगर यह पासवर्ड भूल जाएं तो अकाउंट दोबारा रिकवर नहीं होता यानी सुरक्षा का स्तर बहुत ऊंचा है।

मेटाडेटा सेव नहीं करता Session
Session की टैगलाइन ही है Send Messages, Not Metadata, यानी यह ऐप केवल मैसेज भेजता है, लेकिन उससे जुड़ा डेटा (जैसे कब भेजा, किसे भेजा, लोकेशन आदि) सेव नहीं करता। इसे ऐसे समझिए जैसे किसी फोटो का मेटाडेटा उसकी लोकेशन, कैमरा और टाइम दिखाता है, लेकिन Session ऐप ऐसी कोई जानकारी स्टोर नहीं करता। यही कारण है कि इस ऐप पर किसी यूजर की लोकेशन या डिवाइस डिटेल ट्रैक नहीं की जा सकती। यहां तक कि IP एड्रेस भी सेव नहीं होता। यानी बातचीत पूरी तरह End-to-End Encrypted और ट्रेस-फ्री रहती है।

कमजोरियां भी हैं, लेकिन गोपनीयता है सबसे बड़ी ताकत
हालांकि Session ऐप में कुछ सीमाएं भी हैं। इसमें अभी वीडियो या ऑडियो कॉल की सुविधा नहीं है, और फाइल शेयरिंग की लिमिट सिर्फ 10MB तक है, जबकि WhatsApp जैसे ऐप्स में यह 2GB तक होती है। इसके बावजूद, गोपनीयता और ट्रैकिंग से बचाव के कारण आतंकियों ने इस ऐप को चुना। बता दें कि जांच एजेंसियां अब इस ऐप के जरिए आतंकियों के नेटवर्क और चैट्स को ट्रेस करने की कोशिश कर रही हैं। आने वाले दिनों में इस केस से जुड़ी और अहम जानकारी सामने आ सकती है।

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