जम्मू-कश्मीर की 44% महिलाएं हैं अविवाहित,
जानें क्यों बदल रहा है शादी का नजरिया
6 days ago Written By: Ashwani Tiwari
Jammu and Kashmir Women: कश्मीर जो अपनी परंपराओं और सामाजिक रीति-रिवाजों के लिए पहचाना जाता है, अब विवाह के नजरिए से भी बदलाव का गवाह बन रहा है। पारंपरिक रूप से यहां विवाह का फैसला परिवार और समाज तय करता था। महिलाओं को अपनी पसंद से शादी चुनने का अधिकार लगभग न के बराबर था। शिक्षा और करियर की आकांक्षाएं अक्सर कम उम्र में शादी की परंपरा के आगे छूट जाती थीं। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। खासकर शहरी इलाकों में महिलाएं अपनी शर्तों पर यह तय करने लगी हैं कि वे कब और किससे शादी करेंगी, या फिर शादी न करने का फैसला लेंगी।
क्या कहते हैं आंकड़े एसआरएस स्टेटिकल रिपोर्ट 2023 के मुताबिक जम्मू-कश्मीर की 44 फीसदी महिलाएं अविवाहित हैं। हालांकि यह संख्या कुछ अनुमानों पर आधारित मानी जाती है। 2022 की रिपोर्ट में 43 फीसदी महिलाएं विवाहित बताई गई थीं, यानी अविवाहित महिलाओं का आंकड़ा लगभग 57 फीसदी था, जिसमें विधवा और तलाकशुदा भी शामिल हैं। एक बड़ा बदलाव यह भी दर्ज किया गया है कि महिलाओं की शादी की औसत आयु अब 24.7 साल हो गई है, जो राष्ट्रीय औसत 22.1 साल से कहीं अधिक है। 1990 के पलायन से पहले यह आयु औसतन 21 साल थी।
आर्थिक अस्थिरता और बेरोजगारी कश्मीर की अशांत राजनीतिक स्थिति और रोजगार की सीमित संभावनाओं ने युवाओं के सामने आर्थिक चुनौतियां खड़ी की हैं। विवाह यहां सामाजिक प्रतिष्ठा और परंपराओं से जुड़ा महंगा आयोजन माना जाता है। दहेज और अन्य खर्चों की वजह से बिना स्थिर आय के विवाह करना मुश्किल होता है। यही कारण है कि युवा आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल होने तक विवाह टालते रहते हैं।
शिक्षा और करियर का असर आज के युवा शिक्षा और पेशेवर लक्ष्यों को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। लड़कियां पढ़ाई और करियर बनाने के लिए विवाह की योजनाओं को पीछे कर रही हैं। उनके सामने दोहरी चुनौती होती है अपने सपनों को पूरा करना और साथ ही समाज की अपेक्षाओं पर खरा उतरना।
सामाजिक दबाव और परंपराएं कश्मीर में अब भी अरेंज मैरिज का चलन मजबूत है। परिवार जाति, आर्थिक स्थिति और अन्य मानकों के आधार पर जीवनसाथी चुनते हैं। दहेज की मांग भी विवाह में देरी का एक बड़ा कारण है। कई बार योग्य लड़कियों की शादी सिर्फ इस वजह से नहीं हो पाती।
बदलती सोच और नई प्राथमिकताएं युवा खासकर महिलाएं अब यह समझने लगी हैं कि शादी सिर्फ सामाजिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि व्यक्तिगत पसंद भी है। वे ऐसे साथी की तलाश में हैं, जिनके साथ बराबरी और सम्मान का रिश्ता हो। जल्दबाजी में समझौता करने के बजाय अविवाहित रहना उन्हें बेहतर विकल्प लगता है।