हिंदू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं... फिर क्यों कराए आरएसएस,
मोहन भागवत ने दिया बड़ा बयान
1 months ago Written By: Ashwani Tiwari
कर्नाटक के बेंगलुरु में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने संघ की 100 वर्ष की यात्रा पर आयोजित कार्यक्रम New Horizons में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने संगठन की वैधता, इतिहास और सरकार से जुड़ी कई अहम बातों पर खुलकर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना वर्ष 1925 में हुई थी, जब देश अंग्रेजों के अधीन था। ऐसे में यह सोचना भी गलत होगा कि संघ ब्रिटिश सरकार के साथ रजिस्टर्ड हो सकता था।
रजिस्टर्ड न होने पर दी सफाई मोहन भागवत ने कहा कि आज़ादी के बाद के भारत के कानूनों में हर संगठन का रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं होता। उन्होंने बताया कि कई संस्थाएं और समूह ऐसे हैं जो कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त हैं, लेकिन रजिस्टर्ड नहीं हैं। संघ भी उन्हीं में से एक है। उन्होंने कहा, हमें इस श्रेणी में रखा गया है और एक संगठन के रूप में मान्यता दी गई है।
तीन बार प्रतिबंध, फिर भी वैध संगठन आरएसएस प्रमुख ने कहा कि संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन हर बार अदालतों ने उस प्रतिबंध को हटा दिया। उन्होंने कहा, अगर हम होते ही नहीं, तो सरकार ने किस पर प्रतिबंध लगाया? यह खुद साबित करता है कि आरएसएस एक मान्यता प्राप्त संगठन है। भागवत ने यह भी कहा कि अदालतों और संसद में इस विषय पर कई बार सवाल उठाए गए, लेकिन हर बार संघ को वैध ठहराया गया।
हिंदू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं मोहन भागवत ने उदाहरण देते हुए कहा कि कई चीजें रजिस्टर्ड नहीं हैं, जैसे हिंदू धर्म। फिर भी उनकी पहचान और अस्तित्व पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। इसी तरह आरएसएस का भी अस्तित्व और कार्य वैध है।
आरएसएस को कर में भी छूट मिली भागवत ने बताया कि आयकर विभाग और अदालतों ने भी यह माना है कि आरएसएस एक वैध संगठन है और यह व्यक्तियों का एक निकाय है। इसी आधार पर इसे कर से छूट भी दी गई है। उन्होंने कहा कि संघ को असंवैधानिक बताने वालों को यह समझना चाहिए कि सरकार और न्यायपालिका दोनों ने इसकी वैधता को कई बार स्वीकार किया है।