धर्मांतरण बैन याचिका पर सुनवाई,
CJI बोले- कैसे पता चलेगा यह धोखा है या नहीं
2 days ago Written By: Ashwani Tiwari
Supreme Court: नई दिल्ली से बड़ी खबर आई है जहां सुप्रीम कोर्ट में धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने की मांग को लेकर एक अहम याचिका दायर हुई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत किसी को भी अपने धर्म का प्रचार करने और मानने की स्वतंत्रता है, लेकिन धोखाधड़ी, छल-कपट या बलपूर्वक धर्म परिवर्तन का अधिकार किसी को नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि यह तय करने का अधिकार किसके पास होगा कि धर्म परिवर्तन धोखाधड़ी से हुआ है या नहीं। अदालत ने इस मामले को गंभीर बताते हुए सभी राज्यों से चार हफ्ते में जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ता ने दी दलील यह याचिका एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। उन्होंने कहा कि उनका मकसद केवल धोखाधड़ी और प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन रोकना है। वहीं, भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने स्पष्ट किया कि कोर्ट का काम कानूनों की संवैधानिकता की जांच करना है, न कि नए कानून बनाना।
10 राज्यों में बने धर्मांतरण विरोधी कानून सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट सी.यू. सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और हाल ही में राजस्थान ने भी धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए हैं। उन्होंने कहा कि इन कानूनों को धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम कहा जाता है, लेकिन ये वास्तव में धर्मांतरण को रोकने वाले सख्त कानून हैं।
सख्त सजा और कठोर प्रावधान एडवोकेट सिंह ने कहा कि हाल के संशोधनों से इन कानूनों को और भी कठोर बना दिया गया है। अब तीसरे पक्ष को भी अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करने का अधिकार मिल गया है। इन कानूनों में 20 साल तक की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान है। जमानत की शर्तें इतनी सख्त हैं कि आरोपी के लिए राहत पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है। साथ ही धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को यह साबित करना पड़ता है कि उसने अपनी इच्छा से धर्म बदला है, उस पर कोई दबाव नहीं था।
अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाने से फिलहाल इनकार कर दिया है और कहा है कि राज्यों से जवाब मिलने के बाद ही इस पर विचार होगा। अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद तय की गई है। यह मामला अब पूरे देश में बहस का केंद्र बन गया है।