सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: राष्ट्रपति-राज्यपाल पर नहीं लगेगी टाइम लिमिट,
बढ़ी राज्यों की चिंता
1 months ago Written By: Ashwani Tiwari
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को भेजे गए विधेयकों पर कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि राज्यपाल को निर्णय लेने के लिए “उचित समय” जरूर बताया जा सकता है, लेकिन अदालत या कोई दूसरा संवैधानिक संस्थान उन पर बाध्यता नहीं थोप सकता। कोर्ट ने यह भी माना कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चित काल तक लंबित नहीं रख सकते, लेकिन अदालत उनकी भूमिका नहीं ले सकती। यह फैसला संघवाद, शक्तियों के पृथक्करण और संवैधानिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए सुनाया गया।
राज्यपाल के विकल्पों पर बहस और कोर्ट की टिप्पणी सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि दोनों पक्षों ने राज्यपाल के पास उपलब्ध विकल्पों पर अपनी-अपनी दलीलें रखीं। एक पक्ष का कहना था कि राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं विधेयक मंज़ूर करना, रोकना, राष्ट्रपति के पास भेजना या विधानसभा को वापस करना। जबकि दूसरे पक्ष ने कहा कि वास्तव में राज्यपाल के पास सिर्फ तीन विकल्प हैं मंजूरी, रोक या वापस करना। कोर्ट ने माना कि राज्यपाल अगर विधेयक पर स्वीकृति नहीं देते हैं, तो उसे विधानसभा को लौटाना आवश्यक है। यह व्यवस्था राज्य में संवैधानिक संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है।
राज्यपाल की शक्तियों को अदालत नहीं छीन सकती सीजेआई ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल मुख्य रूप से मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करते हैं और केवल कुछ मामलों में विवेक का उपयोग कर सकते हैं। इसलिए अदालत राज्यपाल की भूमिका नहीं ले सकती और न ही उनकी जगह कोई निर्णय जारी कर सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए अदालत समयसीमा तय नहीं कर सकती, क्योंकि यह संविधान में मौजूद लचीलेपन और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ होगा।
तमिलनाडु केस पर भी हुई महत्वपूर्ण टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने दो जजों की उस टिप्पणी को असंवैधानिक बताया, जिसमें तमिलनाडु के 10 विधेयकों को अदालत ने मान्य सहमति दे दी थी। पांच जजों की पीठ ने कहा कि अदालत किसी भी संवैधानिक प्राधिकारी की शक्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती। अनुच्छेद 142 का उपयोग कर ऐसा करना संविधान की भावना के खिलाफ है।
राज्यपाल को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता सीजेआई ने कहा कि राज्यपाल को उनके निर्णयों के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। हालांकि संवैधानिक न्यायालय उनके निर्णयों की समीक्षा कर सकते हैं। लेकिन अदालत केवल इतना कह सकती है कि राज्यपाल उचित समय में फैसला लें इससे आगे कोई बाध्यता नहीं लगाई जा सकती।