31,580 करोड़ के कथित घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त,
अनिल अंबानी को जवाब देने का आदेश
1 months ago Written By: Ashwani Tiwari
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अनिल अंबानी, रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) और उससे जुड़ी कंपनियों से कथित बैंकिंग फ्रॉड के मामले में गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने केंद्र सरकार, सीबीआई, ईडी और अनिल अंबानी को इस मामले में तीन हफ्ते के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। यह याचिका पूर्व IAS अधिकारी और भारत सरकार के पूर्व सचिव ईएएस सरमा ने दायर की थी, जिसमें उन्होंने 2007-08 से चल रहे कथित बड़े वित्तीय घोटाले की अदालत की निगरानी में जांच की मांग की है। सरमा का दावा है कि यह देश के इतिहास का सबसे बड़ा कॉर्पोरेट फ्रॉड हो सकता है, जिसमें बैंकों, कंपनियों और कई संस्थाओं के बीच मिलीभगत शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, ईडी और सीबीआई को भेजा नोटिस मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन की पीठ ने सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है। सरमा की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि यह घोटाला कई वर्षों से जारी है, लेकिन जांच बहुत सीमित है। कोर्ट ने प्रतिवादियों को याचिका की प्रति उपलब्ध कराने और निर्धारित समय में जवाब दाखिल करने को कहा।
याचिका में एजेंसियों पर लापरवाही के आरोप याचिका में आरोप लगाया गया है कि सीबीआई द्वारा अगस्त 2025 में दर्ज की गई एफआईआर और ईडी की जांच इस बड़े घोटाले का केवल छोटा हिस्सा कवर करती है। सरमा ने दावा किया कि फोरेंसिक ऑडिट सहित कई स्वतंत्र रिपोर्टों ने व्यापक धोखाधड़ी के संकेत दिए हैं, लेकिन एजेंसियों ने बैंक अधिकारियों और नियामक संस्थाओं की भूमिका की जांच नहीं की।
किस तरह हुआ कथित फ्रॉड आरकॉम और उसकी सहायक कंपनियों रिलायंस इंफ्राटेल और रिलायंस टेलीकॉम ने 2013 से 2017 के बीच एसबीआई के नेतृत्व वाले बैंक कंसोर्टियम से 31,580 करोड़ रुपये का लोन लिया था। एसबीआई द्वारा कराए गए फोरेंसिक ऑडिट में खुलासा हुआ कि बंद घोषित किए गए बैंक खातों से भी लेनदेन किए जा रहे थे, जिससे वित्तीय गड़बड़ी का शक और गहरा हो गया।
फर्जी कंपनियों के जरिए धन की हेराफेरी का आरोप याचिका के अनुसार, नेटिजन इंजीनियरिंग और कुंज बिहारी डेवलपर्स जैसी फर्जी कंपनियों के जरिए धन की हेराफेरी की गई। इसके अलावा फर्जी प्रेफरेंस शेयर स्ट्रक्चर का इस्तेमाल करके देनदारियों को गलत तरीके से बट्टे खाते में डाला गया, जिससे 1,800 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ।
जांच में देरी पर उठे सवाल सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया कि एसबीआई ने 2020 में तैयार फोरेंसिक ऑडिट पर कार्रवाई करने में करीब पांच साल की देरी की। अगस्त 2025 में शिकायत दर्ज करना “संस्थागत मिलीभगत” जैसा कदम बताया गया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि नेशनलाइज्ड बैंकों के अधिकारी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत लोक सेवक हैं, इसलिए उनकी भूमिका की जांच बेहद जरूरी है।