इतिहास की सबसे खतरनाक जासूसी…
भूतिया टाइपराइटर खुद भेजता था अमेरिका के सीक्रेट रूस तक
1 months ago Written By: Ashwani Tiwari
Russian KGB Intelligence Agency: यह कहानी है 1970 के दशक की, जब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध अपने चरम पर था। उस दौर में न इंटरनेट था, न सोशल मीडिया, लेकिन सोवियत संघ की कुख्यात खुफिया एजेंसी KGB ने ऐसी तकनीक से जासूसी की, जिसने दुनिया के सबसे ताकतवर देश को हिला दिया। यह रहस्य जुड़ा था मॉस्को स्थित अमेरिकी दूतावास से, जहां एक टाइपराइटर सिर्फ टाइप नहीं कर रहा था, बल्कि हर शब्द की जासूसी भी कर रहा था।
कैसे खुला टाइपराइटर का रहस्य
अमेरिकी राजनयिकों की गोपनीय बातें किसी तरह सोवियत हाथों तक पहुंच रही थीं। कोई बग नहीं, कोई वायर नहीं फिर भी जानकारी लीक हो रही थी। तब एक दिन दूतावास की चिमनी में एक अजीब एंटीना मिला, जिसकी तीन छड़ें अलग-अलग तरंगों पर ट्यून थीं। सवाल उठा कि यह सिग्नल किससे जुड़ा है? इसी रहस्य को सुलझाने में NSA के इंजीनियर चार्ल्स गैन्डी ने अपनी पूरी जिंदगी झोंक दी।
गैन्डी की जांच और अमेरिकी एजेंसी की रोक
जब चार्ल्स गैन्डी ने जांच शुरू की, तो उन्हें अपनी ही एजेंसियों की राजनीति से जूझना पड़ा। उन्हें जांच रोकने के आदेश मिले, लेकिन उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति रॉनल्ड रीगन से अनुमति लेकर काम जारी रखा। दूतावास से करीब 10 टन इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अमेरिका भेजे गए और हर पार्ट को एक्स-रे से जांचा गया।
IBM टाइपराइटर में छिपा था रहस्य हजारों जांचों के बाद आखिरकार एक तकनीशियन ने IBM Selectric टाइपराइटर के स्विच में छोटी-सी तारों का बंडल देखा। गैन्डी ने पाया कि टाइपराइटर के अंदर एक खोखली एल्यूमिनियम बार में सर्किट बोर्ड और 6 मैग्नेटोमीटर लगे थे, जो हर कीस्ट्रोक की चुंबकीय हलचल को पहचानते थे। ये सिग्नल सोवियत टीवी चैनलों की तरंगों में छिपकर भेजे जाते थे, ताकि किसी स्कैन में पकड़ न आएं।
जासूसी से ज्यादा इंसानी बुद्धिमत्ता की मिसाल जब सच्चाई सामने आई, तो गैन्डी ने राहत की सांस ली। उन्होंने कहा, यह जासूसी नहीं, बल्कि इंजीनियरिंग की कमाल की मिसाल है। KGB की इस चाल ने खुफिया एजेंसियों की दुनिया को हमेशा के लिए बदल दिया। यह कहानी सिर्फ जासूसी की नहीं, बल्कि इंसान की अद्भुत कल्पना और तकनीकी बुद्धिमत्ता की भी है।