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मुनाफे के लिए खतरे में डाली देश की सुरक्षा, अमेरिका खुद चीन को बना रहा टेक्नोलॉजी सुपरपावर

2 months ago
Written By: Ashwani Tiwari

एक चौंकाने वाला खुलासा अमेरिका की कथनी और करनी के बीच का बड़ा अंतर दिखाता है। एसोसिएटेड प्रेस (AP) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जहां अमेरिकी सरकार चीन को मानवाधिकार हनन और सुरक्षा खतरे को लेकर सख्त चेतावनियां देती रही, वहीं पिछले कई दशकों से उसने अपनी टेक कंपनियों को चीन की पुलिस, सरकारी एजेंसियों और जासूसी संस्थाओं को तकनीक बेचने की अनुमति दी। इतना ही नहीं, कई मामलों में सरकार ने खुद इन सौदों में मदद भी की। यह सब तब हुआ जब दोनों देशों के बीच तकनीकी वर्चस्व की जंग जारी थी।

क्लाउड सर्विसेज से खुला अमेरिका का सबसे बड़ा लूपहोल
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी सांसदों ने पिछले साल सितंबर से अब तक चार बार इस loophole को बंद करने की कोशिश की, लेकिन हर बार असफल रहे। असल में, अमेरिका ने चीन को उन्नत AI चिप्स की सीधी बिक्री पर रोक लगाई हुई है। इसके बावजूद, चीनी कंपनियां इन चिप्स को अमेरिकी कंपनियों। जैसे माइक्रोसॉफ्ट एज़्योर और अमेज़न वेब सर्विसेज से किराए पर लेकर अपने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल प्रशिक्षित कर रही हैं। हर बार जब इस loophole को बंद करने का प्रस्ताव आया, तो 100 से अधिक लॉबिस्ट सक्रिय होकर उसे रोक देते थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो दशकों में अमेरिकी टेक कंपनियों ने ऐसे लॉबिस्टों पर करोड़ों डॉलर खर्च किए हैं।

लॉबिंग से मुनाफे तक सरकार भी बनी साझेदार
मामला सिर्फ लॉबिंग तक सीमित नहीं रहा। हाल में राष्ट्रपति ट्रम्प ने कई ऐसी डील कीं, जिनसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था चीन को होने वाले तकनीकी निर्यात से और गहराई से जुड़ गई। अगस्त में ट्रम्प ने एनवीडिया और AMD के साथ एक समझौते की घोषणा की, जिसके तहत चीन को उन्नत चिप्स की बिक्री पर लगे नियंत्रणों को हटाया गया। बदले में अमेरिकी सरकार को इन सौदों से 15% राजस्व हिस्सा मिलेगा। इसी महीने ट्रम्प ने यह भी बताया कि सरकार ने इंटेल में 11 अरब डॉलर की हिस्सेदारी ली है। इसका मतलब है कि अब अमेरिकी करदाताओं का पैसा भी चीन को तकनीक बेचकर होने वाले मुनाफे में शामिल है।

मानवाधिकार हनन में भी इस्तेमाल हुई अमेरिकी तकनीक
यह तकनीकी सौदे सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं रहे। रिपोर्ट बताती है कि चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचारों में अमेरिकी तकनीक का इस्तेमाल किया गया। गुलबहार हैतिवाजी नाम की एक उइगर महिला ने बताया कि उन्हें दो साल तक डिटेंशन कैंप में रखा गया, जहां अमेरिकी तकनीक आधारित निगरानी सिस्टम से 24 घंटे मॉनिटर किया जाता था, यहां तक कि टॉयलेट में भी कैमरे लगे थे। 1989 के तियानमेन नरसंहार के बाद भी अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाए थे, वे सिर्फ हथकड़ी या डंडे जैसी चीज़ों तक सीमित थे, जबकि फेशियल रिकग्निशन और सर्विलांस कैमरों जैसी तकनीकें इससे बाहर रहीं। इस मामले पर तियानमेन आंदोलन के नेता रहे झोउ फेंगसुओ ने कहा, यह सब मुनाफे की भूख से प्रेरित है। यह अमेरिका की रणनीतिक विफलता है। वहीं डेमोक्रेटिक सीनेटर रॉन विडेन ने कहा, इन सभी कंपनियों की समानता है। एक बड़ा बटुआ। इसी वजह से इस मुद्दे पर कोई प्रगति नहीं हुई।

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