जानें क्या है जातिगत जनगणना और क्यों है जरूरी?
समाज की गहराई से समझ के लिए जाननी चाहिए ये चीजें
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
Caste Census India 2025 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद जातिगत जनगणना का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है। बता दें कि 30 अप्रैल 2025 को बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ऐलान किया कि केंद्र सरकार जातिगत जनगणना कराने जा रही है। इस ऐलान के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। अब हर ओर इस फैसले की चर्चा हो रही है। एक तरफ कई राजनीतिक दल इसे अपनी जीत बता रहे हैं और श्रेय लेने की कोशिश में हैं। वहीं दूसरी तरफ समाज में इसके फायदों और नुकसानों को लेकर बहस छिड़ गई है। आइए समझते हैं कि आखिर जातिगत जनगणना क्या होती है
जनगणना क्यों है जरूरी?
जनसंख्या की गिनती सिर्फ आंकड़े नहीं हैं। इससे समाज की हालत को समझा जा सकता है। यह नीति बनाने में मदद करता है। इससे पता चलेगा कि किसे क्या सुविधाएं मिल रहीं और कौन वंचित है।
जातिगत आंकड़ों का महत्व
जनगणना के जरिए समाज की संरचना को समझा जा सकता है। विशेषज्ञ लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे थे। इससे पिछड़े और वंचित वर्गों की सही स्थिति सामने आएगी।
भारत में कब हुई जातिगत जनगणना?
भारत में आखिरी जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी। यह सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) थी। इसमें लोगों से उनकी जाति पूछी गई थी। इससे सरकार को समझ आया कि कौन से जाति समूह पिछड़े हैं।
केवल आरक्षण नहीं, व्यापक असर
जातिगत जनगणना सिर्फ आरक्षण के लिए नहीं है। इससे वंचित वर्गों की संख्या और स्थिति साफ होगी। यह सरकार को बेहतर योजनाएं बनाने में मदद करेगा। साथ ही समाज में जरूरी बहसों को जन्म देगा।
अब तक क्या हुआ
आजादी के बाद कभी जातिगत जनगणना नहीं हुई। 2010 में मनमोहन सिंह सरकार ने विचार का आश्वासन दिया था। एक मंत्रिमंडलीय समूह भी बना। लेकिन जातिगत गिनती नहीं हो सकी सिर्फ SECC सर्वे हुआ।
अब केंद्र का फैसला
संविधान में जनगणना केंद्र का विषय है। कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर जातियों की गिनती की है। लेकिन अब पहली बार केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर यह कदम उठाने जा रही है।