ममता से दो-दो हाथ करने को बीजेपी तैयार,
बदली गई पूरी चुनावी रणनीति..!
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
पश्चिम बंगाल में 2026 के अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इस बार बंगाल में चुनावी समीकरण पूरी तरह बदलने की तैयारी कर ली है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कड़ी चुनौती देने के लिए नई रणनीति बनाई है, जिसमें मोदी को पार्टी का मुख्य चेहरा बनाना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ तालमेल बढ़ाना, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जोर देना और ध्रुवीकरण की राजनीति को साधना शामिल है। बीजेपी इस बार किसी एक निश्चित फार्मूले पर नहीं, बल्कि ट्रायल-एंड-एरर रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी का लक्ष्य है कि बंगाल की सियासत में अपनी पकड़ मजबूत की जाए और टीएमसी के किले को दरकाया जाए।
मोदी बने बीजेपी की नई रणनीति का चेहरा
दरअसल बीजेपी में फिलहाल ऐसा कोई क्षेत्रीय नेता नहीं है जो ममता बनर्जी को सीधी टक्कर दे सके। पार्टी अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य शहरी और मध्यमवर्गीय वर्ग में लोकप्रिय हैं, लेकिन जननेता नहीं माने जाते। सुवेंदु अधिकारी, जो मेदिनीपुर तक सीमित हैं, पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर सक्रिय हैं, लेकिन ममता बनर्जी जैसी व्यापक स्वीकार्यता उनके पास नहीं है। ऐसे में बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बंगाल की “गेरंटी” के रूप में पेश करने का फैसला किया है। पार्टी का मानना है कि मोदी की राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत छवि और उनके विकास का एजेंडा बंगाल में मतदाताओं के बीच असरदार साबित हो सकता है। पार्टी का नारा होगा – “मोदी है तो मुमकिन है” – लेकिन इस बार इसे बंगाल की पहचान के साथ जोड़ा जाएगा।
संगठन की कमी को पूरा करेगा आरएसएस
बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है मजबूत संगठन का अभाव। 2021 के चुनाव में पार्टी को यह समझ आया कि मोदी की लोकप्रियता के बावजूद बीजेपी हर गांव और घर तक नहीं पहुंच पाई। इसका बड़ा कारण था पार्टी की संगठनात्मक कमजोरी। इस बार बीजेपी ने आरएसएस के साथ समन्वय बढ़ाया है। संघ के कार्यकर्ता जिले-दर-जिले घर-घर जाकर अभियान चलाएंगे, मतदाताओं से संपर्क करेंगे और टीएमसी के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश करेंगे। आरएसएस की ‘शाखा’ बैठकों, बुद्धिजीवियों के साथ संवाद और नागरिक समाज तक पहुंचने की योजनाएं पहले ही तैयार की जा चुकी हैं।
टीएमसी की लोकल योजनाओं से मुकाबला मुश्किल
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ‘लक्ष्मी भंडार’ और ‘अमादेर पारा, अमादेर समाधान’ जैसी योजनाओं को लगातार प्रमोट कर रही हैं। इन योजनाओं की लोकप्रियता को देखते हुए बीजेपी के लिए सीधे-सीधे मुकाबला करना आसान नहीं होगा। पार्टी ने रणनीति बनाई है कि टीएमसी की योजनाओं के लाभ और खामियों का जमीनी स्तर पर अध्ययन किया जाएगा और फिर इन आंकड़ों का इस्तेमाल ममता सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने के लिए किया जाएगा।
हिंदुत्व पर कम, विकास पर ज्यादा जोर
बीजेपी ने इस बार बंगाल में हिंदुत्व का नारा धीमा कर दिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में “जय श्री राम” का नारा जमकर दिया गया था, लेकिन इसका कोई बड़ा फायदा नहीं मिला। अब पार्टी की कोशिश है कि बंगाल की सांस्कृतिक पहचान के साथ खुद को जोड़ा जाए। प्रधानमंत्री मोदी अपनी रैलियों में “जय मां काली” और “जय मां दुर्गा” जैसे नारे लगा रहे हैं, ताकि स्थानीय भावनाओं को साधा जा सके।
भ्रष्टाचार, घुसपैठ और मतदाता सूची पर फोकस
बीजेपी का बड़ा दांव इस बार भ्रष्टाचार पर है। पार्टी टीएमसी को ‘वाशिंग मशीन राजनीति’ का प्रतीक बताकर प्रचार कर रही है। इसके अलावा घुसपैठ का मुद्दा भी बीजेपी की रणनीति में अहम भूमिका निभा रहा है। पार्टी का दावा है कि टीएमसी के शासन में सीमापार घुसपैठ बढ़ी है, जिससे बंगाल की डेमोग्राफी बदल रही है। साथ ही बीजेपी ने मतदाता सूची में संशोधन की मांग की है। पार्टी का आरोप है कि टीएमसी मतदाता सूची में गड़बड़ी कर रही है और मृत मतदाताओं के नाम जानबूझकर नहीं हटाए जा रहे।
सोशल मीडिया पर आक्रामक प्रचार
बीजेपी इस बार डिजिटल रणनीति पर खास ध्यान दे रही है। पार्टी बंगाल के हर जिले में व्लॉग, पॉडकास्ट, लोकल विज्ञापनों और सोशल मीडिया अभियानों के जरिए मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। युवाओं को जोड़ने के लिए इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब शॉर्ट्स पर विशेष फोकस रखा गया है।
क्या बीजेपी ममता को दे पाएगी कड़ी टक्कर ?
बीजेपी की रणनीति में बदलाव साफ दिखाई दे रहा है। मोदी की मजबूत छवि, आरएसएस की जमीनी ताकत, सोशल मीडिया का आक्रामक इस्तेमाल और भ्रष्टाचार व घुसपैठ के मुद्दों पर हमले – ये सब बंगाल की सियासत में एक नए समीकरण की ओर इशारा करते हैं। हालांकि, ममता बनर्जी का करिश्मा, टीएमसी की लोकल योजनाओं की पकड़ और बंगाल की सांस्कृतिक राजनीति बीजेपी के लिए अब भी बड़ी चुनौती बनी हुई है।