रामभद्राचार्य की प्रेमानंद पर टिप्पणी को लेकर बढ़ा विवाद,
संत समाज ने जताया खासा आक्रोश
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
संत समाज में इन दिनों काफी गहमागहमी देखेने को मिल रही है। यहां आध्यात्मिक गुरु स्वामी रामभद्राचार्य द्वारा संत प्रेमानंद को लेकर की गई टिप्पणी ने संत समुदाय के भीतर गहरा असंतोष पैदा कर दिया है। कई प्रमुख संतों और आध्यात्मिक नेताओं ने इस बयान की कड़ी निंदा करते हुए इसे सनातन धर्म की एकता के लिए हानिकारक बताया है। उनका मानना है कि ऐसे बयान न केवल अनावश्यक विवाद खड़े करते हैं बल्कि युवाओं के मन में संतों और आध्यात्मिक परंपराओं के प्रति भ्रम भी पैदा करते हैं।
रामभद्राचार्य की टिप्पणी और बढ़ता विवाद
स्वामी रामभद्राचार्य ने संत प्रेमानंद के संदर्भ में कहा कि उन्हें किसी भी प्रकार का चमत्कारी संत मानना उचित नहीं है। उनका कहना था कि प्रेमानंद जी उनके लिए “बालक के समान” हैं और यदि उनके पास सच में कोई चमत्कार है तो वे एक संस्कृत का श्लोक सही उच्चारण के साथ बोलकर दिखाएं या फिर उनके बताए श्लोकों का अर्थ समझा दें। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे प्रेमानंद जी से कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं रखते, लेकिन उन्हें न तो विद्वान मानते हैं और न ही चमत्कारी संत। रामभद्राचार्य ने आगे यह भी कहा कि चमत्कार उसी को माना जाता है जो शास्त्रीय चर्चा में सहज हो, संस्कृत के श्लोकों का सही अर्थ बता सके और ज्ञान की गहराई रखता हो। प्रेमानंद महाराज की लोकप्रियता को उन्होंने “क्षणभंगुर” करार दिया और कहा कि उन्हें उनका भजन करना अच्छा लगता है, लेकिन इसे चमत्कार कहना स्वीकार्य नहीं।
संत समाज का तीखा विरोध
रामभद्राचार्य की इस टिप्पणी पर संत समाज ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। हनुमान गढ़ी मंदिर के पुजारी महंत राजू दास ने कहा कि स्वामी रामभद्राचार्य और संत प्रेमानंद, दोनों ही महान संत हैं और इस प्रकार के बयान किसी भी रूप में नहीं दिए जाने चाहिए। उन्होंने संत समाज से आपसी एकता बनाए रखने की अपील की। संत दिनेश फलाहारी महाराज ने प्रेमानंद जी को “महान और दिव्य संत” बताते हुए कहा कि रामभद्राचार्य का बयान “गलत” है। उनके अनुसार, किसी संत के प्रति ऐसी द्वेष भावना रखना चिंता का विषय है।
अखिल भारतीय संत समिति का रुख
अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव महंत केशव स्वरूप ब्रह्मचारी ने कहा कि यह जरूरी नहीं कि केवल चमत्कारी संत ही संस्कृत के ज्ञाता हों या केवल संस्कृत के विद्वान ही चमत्कार कर सकें। उनके अनुसार, ऐसे विवाद सनातन परंपरा की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं।
अन्य संतों की प्रतिक्रिया
आचार्य मधुसूदन महाराज ने रामभद्राचार्य की टिप्पणी को “पूरी तरह निराधार और निंदनीय” बताया। उन्होंने कहा कि प्रेमानंद जी पर ऐसे आरोप लगाना अनुचित है। महामंडलेश्वर स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने भी रामभद्राचार्य की आलोचना करते हुए कहा, “रामभद्राचार्य हमेशा कुछ न कुछ विवाद खड़ा करते रहते हैं। यह उनकी आदत बन चुकी है। उन्हें इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए।” सीताराम दास महाराज ने भी इसे “संकीर्ण मानसिकता” का परिचायक बताया और कहा कि प्रेमानंद महाराज लाखों युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं। ऐसे में रामभद्राचार्य को इस प्रकार का बयान देने से बचना चाहिए था।
विवाद के प्रभाव और संत समाज की चिंता
यह विवाद संत समाज में गंभीर दरार पैदा करता दिख रहा है। वरिष्ठ संतों का मानना है कि इस तरह की टिप्पणियां समाज में धार्मिक विभाजन पैदा करती हैं और युवा पीढ़ी में भ्रम का माहौल बनाती हैं। उनका कहना है कि सनातन धर्म की एकता और समरसता बनाए रखने के लिए आपसी सम्मान और संवाद आवश्यक है।