JCP को लेकर गरमाई सियासत,
इन विपक्षीय पार्टियों ने किया संयुक्त संसदीय समिति से नारा
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को 30 दिन की गिरफ्तारी की स्थिति में पद से हटाने से जुड़े तीन विवादित विधेयकों पर सियासत गरमा गई है। केंद्र सरकार द्वारा इन विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजे जाने के बाद विपक्षी दलों में नाराजगी बढ़ गई है। अब आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी साफ कर दिया है कि वह जेपीसी में शामिल नहीं होगी। इससे पहले तृणमूल कांग्रेस (TMC) और समाजवादी पार्टी (SP) भी इस समिति से किनारा कर चुकी हैं।
केंद्र सरकार के तीन बड़े विधेयक बने विवाद की वजह
लोकसभा में बुधवार को केंद्र सरकार ने तीन अहम विधेयक पेश किए, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025। इन विधेयकों का मुख्य प्रावधान यह है कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी मामले में 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो उसे स्वतः पद से हटा दिया जाएगा। सरकार का कहना है कि यह प्रावधान पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है, लेकिन विपक्षी दल इसे पूरी तरह से राजनीतिक हथकंडा मान रहे हैं।
आप का आरोप: “विपक्षी सरकारें गिराने की साजिश”
आम आदमी पार्टी ने रविवार को ऐलान किया कि वह जेपीसी में शामिल नहीं होगी। पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने लिखा कि यह विधेयक भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं बल्कि विपक्षी नेताओं को फंसाने और सरकारों को अस्थिर करने की साजिश है। संजय सिंह ने सवाल उठाया कि, “भ्रष्टाचारियों के सरदार भ्रष्टाचार के खिलाफ विधेयक कैसे ला सकते हैं? नेताओं को फर्जी मामलों में फंसाना, जेल में डालना और विपक्षी सरकारों को गिराना ही इस विधेयक का असली उद्देश्य है। इसी वजह से अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने जेपीसी में शामिल न होने का फैसला लिया है।” इस बयान के बाद साफ हो गया है कि आम आदमी पार्टी इन विधेयकों को लेकर सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाएगी।
टीएमसी का हमला, जेपीसी को बताया ‘तमाशा’
आम आदमी पार्टी से पहले तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने भी जेपीसी का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था। टीएमसी के राज्यसभा में नेता डेरेक ओ'ब्रायन ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा कि यह संयुक्त संसदीय समिति “बेमतलब” है। उनका कहना था कि सरकार विपक्षी दलों को भ्रमित करने और अपनी साजिशों को छिपाने के लिए जेपीसी का इस्तेमाल कर रही है। शनिवार को टीएमसी ने एक बयान जारी करते हुए इस समिति को “तमाशा” करार दिया। पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार का असली मकसद विपक्षी दलों की सरकारों को अस्थिर करना है, इसलिए वह किसी भी कीमत पर इस समिति में शामिल नहीं होगी।
समाजवादी पार्टी भी नहीं भेजेगी सदस्य
सूत्रों के मुताबिक, समाजवादी पार्टी (SP) भी इस समिति में अपना कोई सदस्य नामित करने के मूड में नहीं है। पार्टी का मानना है कि केंद्र सरकार के इन तीनों विधेयकों का असली उद्देश्य लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करना और विपक्षी नेताओं पर दबाव बनाना है। एसपी नेताओं का कहना है कि जिस तरह इन विधेयकों को संसद में पेश किया गया, उससे साफ है कि सरकार विपक्ष को पूरी तरह दरकिनार कर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करना चाहती है।
विवाद गहराया, संसद में टकराव के आसार
इन तीनों विधेयकों को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच टकराव अब तेज हो गया है। जेपीसी के गठन के बावजूद जब लगातार कई बड़े दल इसमें शामिल होने से इनकार कर रहे हैं, तो संसदीय कार्यवाही पर भी इसका सीधा असर पड़ सकता है। विपक्ष का आरोप है कि इन विधेयकों की आड़ में केंद्र सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करने की कोशिश कर रही है, जबकि सरकार का दावा है कि यह कदम जवाबदेही और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले दिनों में संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह इस मुद्दे पर भारी हंगामा देखने को मिल सकता है। जेपीसी का बहिष्कार करने वाले दलों की संख्या बढ़ने से सरकार पर दबाव और भी ज्यादा बढ़ सकता है।