कोर्ट के आदेश के बाद सपा का मास्टरप्लान,
नए नाम से चलाया जाएगा पुराना अभियान
1 months ago Written By: आदित्य कुमार वर्मा
उत्तर प्रदेश में जाति आधारित आयोजनों और दस्तावेज़ों पर हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश ने बड़ा असर डाला है। कोर्ट के निर्देश के तहत अब सरकारी रिकॉर्ड, कानूनी दस्तावेज, सार्वजनिक जगहों और रैलियों में जाति का उल्लेख करना प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस फैसले के बाद राजनीतिक दलों के लिए जातिगत समीकरणों को लेकर रणनीति बनाने की दिशा बदल गई है।
सपा का नया अभियान- पीडीए चौपाल वहीं इस आदेश के प्रभाव के बीच समाजवादी पार्टी ने अपनी रणनीति बदलते हुए गुर्जर चौपाल का नाम बदलकर पीडीए चौपाल (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) कर दिया है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी की अगुवाई में यह अभियान उत्तर प्रदेश के 34 जिलों और 132 विधानसभा क्षेत्रों में चल रहा है। अभियान के पहले चरण में 10 से अधिक जिलों में चौपालें आयोजित की जा चुकी हैं। राजकुमार भाटी ने इस संबंध में स्पष्ट किया कि सपा केवल अपने समाज के राजनीतिक अधिकारों को लेकर जागरूकता फैला रही है और किसी अन्य जाति पर कोई आरोप नहीं लगाया जा रहा। वहीं इस बीच मेरठ में सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर विवाद ने तूल पकड़ा हुआ है। इस विवाद के चलते 20 से अधिक लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं, और गुर्जर स्वाभिमान सम्मेलनों पर पाबंदी लगा दी गई है।
अभियान के चरण और रणनीति सपा के प्रवक्ता भाटी ने बताया कि अभियान के पहले चरण में राज्य के गुर्जर समाज की राजनीतिक ताकत का सर्वे किया गया। दूसरे चरण में गुर्जर बहुल जिलों में चौपाल लगाई जा रही हैं। आगरा और फिरोजाबाद में पहले ही चौपालें आयोजित की जा चुकी हैं। आगामी कार्यक्रमों में 25 सितंबर को मेरठ, 26 सितंबर को मथुरा और 28 सितंबर को मुजफ्फरनगर में चौपालें आयोजित की जाएंगी। बीजेपी ने इस अभियान को लेकर सपा पर पलटवार किया है। जिलाध्यक्ष अभिषेक शर्मा ने आरोप लगाया कि सपा जातिगत द्वेष फैला रही है। उन्होंने कहा कि बीजेपी विकास की राजनीति करती है और सभी समाजों को साथ लेकर आगे बढ़ने में विश्वास रखती है।
“सरकार खुद जातियों पर आधारित” सपा प्रवक्ता राजकुमार भाटी ने बीजेपी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह बदलाव समाज के लोगों को मुकदमों और कार्रवाई से बचाने के लिए किया गया है। भाटी ने कहा कि यह अभियान किसी युद्ध के लिए नहीं बल्कि गांधीवादी तरीके से समाज में जागरूकता फैलाने के लिए है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बीजेपी खुद जातियों के नाम पर सम्मेलन आयोजित करती है और मुख्यमंत्री की रैलियों में जातियों को प्रमुखता दी जाती है। भाटी ने सवाल उठाया कि अगर जातिवाद खत्म करना है तो सरकार जातियों पर आधारित प्रमाणपत्र बनाना बंद करे।