EVM इंटरनेट से नहीं जुड़ी, फिर भी हर दो घंटे में पहुंचता वोटिंग डेटा…
जानिए कैसे होता है ये कमाल
1 months ago Written By: ANIKET PRAJAPATI
बिहार में विधानसभा चुनाव का माहौल गरम है। पहले फेज की 121 सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है, जबकि दूसरे चरण में 122 सीटों पर वोटिंग बाकी है। पूरे राज्य में करीब 90 हजार 712 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं, जहां 7 करोड़ 42 लाख से ज्यादा वोटर अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि जब इतनी बड़ी संख्या में बूथों पर एक साथ वोटिंग होती है और ईवीएम मशीनें इंटरनेट से जुड़ी नहीं होतीं, तो चुनाव आयोग तक हर दो घंटे में वोटिंग प्रतिशत का अपडेट इतनी तेजी से कैसे पहुंचता है? आखिर आयोग को “सुबह 11 बजे तक इतने प्रतिशत मतदान हुआ” जैसी जानकारी रियल टाइम में कैसे मिल जाती है?
EVM से नहीं, ऐप के जरिए पहुंचता है डेटा पीठासीन अधिकारी रह चुके हिमांशु शुक्ला से। उन्होंने बताया कि ईवीएम में इंटरनेट कनेक्शन नहीं होता, इसलिए वह खुद से कोई डेटा नहीं भेजती। इसके लिए चुनाव आयोग हर पीठासीन अधिकारी को एक MPS App (Mobile Polling Station App) देता है। मतदान से पहले सभी अधिकारियों को इस ऐप की ट्रेनिंग दी जाती है।हिमांशु के अनुसार, “हमें एक APK फाइल दी गई थी, जिसे इंस्टॉल करने पर MPS ऐप खुलता था। उसमें हमें अपने रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर से लॉगिन करना होता था। सुबह 7 बजे जैसे ही मतदान शुरू होता है, ऐप पर वोटिंग शुरू होने की सूचना भेजनी होती है। इसके बाद हर दो घंटे पर यह अपडेट देना होता है कि कितने पुरुषों और महिलाओं ने वोट डाला है।” यही डेटा चुनाव आयोग के सर्वर तक पहुंचता है और बाद में Voter Turnout App पर सार्वजनिक किया जाता है।
फोन से भी भेजी जाती है जानकारी हिमांशु शुक्ला बताते हैं कि ऐप के अलावा भी एक बैकअप व्यवस्था होती है। हर पीठासीन अधिकारी को हर दो घंटे में सेक्टर मजिस्ट्रेट को फोन करके वोटिंग का अपडेट देना होता है। सुबह से लेकर शाम तक यानी मतदान खत्म होने तक यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। इस तरह हर बूथ से डेटा या तो ऐप के जरिए या फोन के माध्यम से आयोग तक पहुंचता है।
फाइनल वोटिंग टर्नआउट में फर्क क्यों आता है? कई बार लोगों के मन में सवाल उठता है कि मतदान वाले दिन जो वोटिंग प्रतिशत बताया जाता है, वह फाइनल आंकड़ों से थोड़ा अलग क्यों होता है। इस पर हिमांशु कहते हैं, “जो वोटर वोटिंग टाइम खत्म होने से पहले बूथ पर आ जाते हैं, उन्हें वोट डालने का पूरा मौका दिया जाता है, भले ही समय सीमा पार हो जाए। ऐसे में मतदान कई बार 1-2 घंटे देर तक चलता है। इसी कारण ऐप पर डेटा देर से अपडेट होता है। जब आयोग फाइनल टर्नआउट जारी करता है, तो वही असल आंकड़ा होता है, जिससे शाम के डेटा में थोड़ा फर्क नजर आता है।”
तकनीक और अनुशासन से चलता है पूरा सिस्टम इस तरह बिहार चुनाव में लाखों वोटरों की भागीदारी और हर बूथ से लगातार आने वाला डेटा केवल तकनीक और अनुशासन की वजह से संभव हो पाता है। चुनाव आयोग का यह डिजिटल सिस्टम दिखाता है कि लोकतंत्र को मजबूत बनाने में तकनीक कितनी बड़ी भूमिका निभा रही है।