बिहार जीत के बाद भाजपा का मिशन बंगाल:
क्या चलेगा बिहार का फॉर्मूला?
1 months ago Written By: Aniket prajapati
बिहार विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद भाजपा अब पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिशन बंगाल का ऐलान किया था। लेकिन राज्य की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियां बिहार से बिल्कुल अलग हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा और टीएमसी के बीच सीधी टक्कर है। बीते तीन चुनावों—2019 लोकसभा, 2022 विधानसभा और 2024 लोकसभा—के नतीजों ने पार्टी को यह एहसास दिलाया कि बंगाल में सिर्फ हिंदू राष्ट्रवाद के मुद्दे पर जीत पाना आसान नहीं है।
बीते तीन चुनावों का विश्लेषण 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बंगाल की 42 सीटों में से 18 पर जीत हासिल की थी और 40.25 फीसदी वोट मिले थे। यह पार्टी का शानदार प्रदर्शन माना गया। लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत घटकर 27.81 फीसदी रह गया और उसे 77 सीटें मिलीं। 2024 के लोकसभा चुनाव में सीटें घटकर 12 हो गईं जबकि वोट प्रतिशत 39.10 फीसदी रहा। वहीं, टीएमसी बीते दो चुनावों में अपने 2019 प्रदर्शन से अधिक आगे नहीं बढ़ पाई, जो भाजपा के लिए चिंता का विषय है।
भाजपा का अलग रुख: मुस्लिम वोट बैंक पश्चिम बंगाल में भाजपा का एसआईआर (संपर्क अभियान) चल रहा है, लेकिन बिहार की तरह घुसपैठ और राष्ट्रवादी मुस्लिमों के खिलाफ रुख नहीं अपनाया गया है। पार्टी यह संदेश दे रही है कि वह राष्ट्रवादी मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है, ताकि धार्मिक समीकरण बिगड़ें नहीं और वोट बैंक संतुलित रहे।
भौगोलिक और सामाजिक चुनौती भाजपा जानती है कि बंगाल में जातिगत समीकरण बिहार या उत्तर प्रदेश जितने अहम नहीं हैं। राज्य में लगभग 30 फीसदी मुस्लिम आबादी है। 2011 से सत्ता में रहने वाली ममता बनर्जी की टीएमसी के खिलाफ भाजपा को क्षेत्रीय और धार्मिक संतुलन बनाने की चुनौती का सामना करना होगा। यही कारण है कि पार्टी पश्चिम बंगाल में चुनावी फॉर्मूला बदलने पर मजबूर है।