दिल्ली में AAP का किला ढहा : भाजपा ने 27 साल बाद की वापसी,
जानिए क्यों हारी केजरीवाल की पार्टी
2 months ago
Written By: Sushant Pratap Singh
दिल्ली की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, जो पिछले तीन बार लगातार सत्ता में रही, इस बार बहुमत से कोसों दूर नज़र आ रही है। भाजपा ने आम आदमी पार्टी को चौथी बार जीतने से रोक दिया और 27 साल बाद दिल्ली में सत्ता में लौटती दिख रही है। 1998 के बाद भाजपा ने कभी दिल्ली में सरकार नहीं बनाई थी, लेकिन इस बार परिस्थितियाँ बदलीं, मुद्दे बदले और चुनावी रणनीतियाँ भी पूरी तरह से बदल गईं।
भ्रष्टाचार के आरोप और बड़े नेताओं की गिरफ्तारी
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की राजनीति को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए लोकलुभावन योजनाओं का सहारा लिया था। मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी योजनाओं के दम पर AAP जनता का भरोसा जीतती रही, लेकिन इस बार हालात अलग थे। सबसे बड़ा झटका तब लगा जब दिल्ली की शराब नीति घोटाले में खुद केजरीवाल का नाम आया और उन्हें जेल जाना पड़ा। उनके सबसे भरोसेमंद साथी मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन पहले ही जेल में थे, संजय सिंह को भी लंबे समय तक जमानत नहीं मिली। चुनाव से ठीक पहले जब पार्टी के सबसे अहम चेहरे ही कानूनी मामलों में उलझे हुए थे, तो इसका सीधा असर जनता की धारणा पर पड़ा। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जन्मी AAP खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गई, जिससे भाजपा को बड़ा मुद्दा मिल गया।
मुफ्त की रेवड़ी बनी केजरीवाल की कमजोरी
AAP की राजनीति का सबसे मजबूत आधार उनकी मुफ्त योजनाएँ थीं। लेकिन इस बार भाजपा ने भी यही दांव खेला। चुनावी घोषणा पत्र में महिलाओं, युवाओं, ऑटो-रिक्शा चालकों और अन्य वर्गों के लिए बड़े वादे किए गए। कांग्रेस ने भी इसी रणनीति को अपनाया। जब मुफ्त योजनाओं की राजनीति में सभी दल उतर आए, तो AAP की सबसे बड़ी ताकत उसकी कमजोरी बन गई।
शीशमहल बना दिल्ली चुनाव का बड़ा चुनावी मुद्दा
केजरीवाल की छवि को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब भाजपा ने उनके मुख्यमंत्री आवास को लेकर सवाल उठाए। भाजपा ने इसे शीश महल करार देते हुए प्रचार किया कि जो नेता VIP कल्चर का विरोध करता था, वह खुद करोड़ों रुपये खर्च कर अपने लिए आलिशान बंगला बनवा रहा है। कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया, जिससे जनता के बीच AAP की सादगी वाली छवि पूरी तरह से ध्वस्त हो गई।
यमुना ने पलटा चुनावी नतीजा
भ्रष्टाचार के आरोपों और महंगे बंगले के विवाद के अलावा जनता की नाराजगी बढ़ाने वाला एक और बड़ा कारण यमुना सफाई और बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी रही। केजरीवाल और उनकी पार्टी ने सत्ता में आने से पहले वादा किया था कि यमुना को साफ किया जाएगा। लेकिन दस साल बाद भी स्थिति जस की तस बनी रही। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केजरीवाल को चुनौती दी कि वे अपनी कैबिनेट के साथ यमुना में स्नान करें, जिससे यह मुद्दा और भड़क गया। भाजपा और कांग्रेस ने दिल्ली की खराब सड़कों, जलभराव और प्रदूषण जैसे बुनियादी मुद्दों पर AAP को घेरा, जिससे जनता का भरोसा और कमजोर पड़ गया।
पीएम मोदी का नारा दिल्ली चुनाव में छाया
चुनावी माहौल में भाजपा ने एक और मास्टरस्ट्रोक खेला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने AAP को आपदा करार देते हुए कहा कि यह पार्टी दिल्ली के लिए नुकसानदायक साबित हुई है। इस नारे के जरिए भाजपा ने चुनावी माहौल पूरी तरह से अपने पक्ष में मोड़ दिया। पार्टी ने प्रचार के दौरान केंद्र सरकार की उन योजनाओं को गिनाया, जिनका फायदा दिल्ली की जनता को नहीं मिला क्योंकि AAP सरकार ने उन्हें लागू नहीं किया। इससे भाजपा को जनता के बीच एक मजबूत पकड़ बनाने में मदद मिली।
कांग्रेस ने भी पहुंचाया 'आप' को नुकसान
कांग्रेस, जो पिछले दो चुनावों में लगभग अप्रासंगिक हो गई थी, इस बार आक्रामक चुनावी रणनीति के साथ उतरी। 2015 और 2020 के चुनावों में उसे बेहद कम वोट मिले थे, लेकिन इस बार उसने अपने अभियान को पूरी ताकत से लड़ा और वोट शेयर बढ़ाने में सफल रही। कांग्रेस भले ही सत्ता में न आ पाए, लेकिन उसके उभरने से सबसे ज्यादा नुकसान AAP को हुआ।