स्वामी प्रसाद मौर्य फिर बदल सकते हैं पाला ?
जाने किस पार्टी से गुपचुप हो रहा गठजोड़…
4 days ago
Written By: STATE DESK
UP Politics: उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई दलों का साथ निभा चुके पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य एक बार फिर राजनीतिक पाला बदल सकते हैं। फिलहाल वे ‘जनता पार्टी’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, लेकिन लखनऊ में हुई एक सियासी मुलाकात के बाद उनके नए राजनीतिक रुख को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। माना जा रहा है कि स्वामी के इस बार पाला बदलने के बाद यूपी का सियासी गणित बदल सकता है।
चोरी छुपे हुई खास मुलाकात
सूत्रों के अनुसार, लखनऊ में स्वामी प्रसाद मौर्य और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद के बीच एक अहम और लंबी मुलाकात हुई। बताया जा रहा है कि यह मुलाकात एक निजी स्थान पर हुई, जिसमें दोनों नेताओं के बीच सामाजिक न्याय और दलित-पिछड़ा समाज को एकजुट करने को लेकर गंभीर चर्चा हुई। जिसके बाद स्वामी के पाला बदलने के कयास लगाए जा रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक, स्वामी मौर्य जल्द ही आज़ाद समाज पार्टी में शामिल हो सकते हैं। माना जा रहा है कि पार्टी उन्हें उत्तर प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकती है। अगर ऐसा होता है, तो इससे बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सियासी रणनीतियों में खलबली मच सकती है, क्योंकि स्वामी मौर्य की पकड़ दलित और पिछड़े वर्गों में मजबूत मानी जाती है।
कई बार बदल चुके हैं दल
स्वामी प्रसाद मौर्य का सियासी सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। वर्ष 2012 में उन्होंने पडरौना विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर बसपा सरकार में मंत्री पद संभाला था। इसके पहले भी वे 13वीं, 14वीं और 15वीं विधानसभा में विधायक रह चुके हैं। लगभग दो दशक तक वे बसपा से जुड़े रहे, इसके बाद उन्होंने बीजेपी का दामन थामा और वहां भी कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य किया।
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी का हाथ थामा। सपा के टिकट पर उन्होंने फाजिलनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। तब से वे ‘जनता पार्टी’ के अध्यक्ष के रूप में सक्रिय हैं।
क्या समीकरण बिगाड़ेगा दलित-पिछड़ा गठजोड़
अब अगर वह आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) में शामिल होते हैं तो यह न केवल उनका नया राजनीतिक अध्याय होगा, बल्कि यूपी की राजनीति में भी नए समीकरण पैदा कर सकता है। दलित-पिछड़ा गठजोड़ को लेकर उनका यह कदम भविष्य की बड़ी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।